पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२७२

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२६२ रजवाड़ो की कहानियां गए ?" 'जी हा, जी हां,'-डाक्टर ने थूक सटककर हंसने की कोशिश की। मैंने कहा-और आपने इधर ध्यान नहीं दिया ? 'दिया साहब, मैंने मैं संयत न रह सका । गरजकर मैंने कहा--डाक्टर, यह सरासर खून का केस है, मुझे मुनासिव है कि मैं पुलिस को इत्तला दू । मैं तेजी से कुर्सी छोडकर उठ खड़ा हुआ । मुहब्बत चीख मारकर बेहोश हो गई । डाक्टर मुर्दे की भांति जर्द पड़ गया । जूड़ीग्रस्त पुरुष की भांति वह कांपने लगा। इसी समय राजा ने आंखें खोली। उनकी वह दृष्टि स्वाभाविक थी। मैं लपक- कर उनके पास गया। दोनों हाथों में उनका हाथ लेकर कहा-महाराज, साहस मत खोइए, आपकी जो इच्छा हो, कहिए। उन्होंने इधर-उधर सांखें घुमाईं। क्षीण स्वर मे कहा-बड़े तुरन्त ही बड़े कुंवर ने उनकी गोद में सिर डाल दिया। राजा की आखों से आंसुओं की धारा बह चली । मैंने नाड़ी देखी, दिल की धड़कन देखी। भीड को तुरन्त हटाया। राजा साहब ने मुंह खोल दिया। मैंने कहा-गंगाजल दीजिए। दो तुलसीदल डालकर एक घूट गंगाजल उनके मुह में डाल दिया गया। जल कण्ठ में गया और प्राण नश्वर शरीर से पृथक् हुआ । उस रियासत में मेरा काम और मेरे सम्बन्ध सब समाप्त हो चुके थे। फिर भी जिस दिन नए राजा को पगड़ी बंधी मुझे हाजिर होना पड़ा। नए राजा नव- युवक, भावुक और दुबले-पतले लजीले से थे। सब कृत्य समाप्त होने पर जब मैं एकान्त में मिला तो बातें हुई । मैंने कहा- 'उस मामले मे आपने कुछ किया ?' 'क्या आपको कुछ मालूम था ?' 'मैं निश्चित रूप से सिद्ध कर सकता हूं कि यह अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया गया खून था।' 'परन्तु किसी भी डाक्टर ने ऐसा नहीं कहा ?' 'कैसे कहा जा सकता था, खूनी डाक्टर है । सब कार्य बहुत बैज्ञानिक रीति से हुआ । संदेह की कोई भी गुंजाइश न थी। मुझे तो केवल एक सूत्र मिल गया, नहीं तो मैं भी न जान सकता ।