पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२७४

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राजा साहब की कुतिया यह भी ऐसी ही कहानी है। राजा-रईसों की सनक, भड़क और हिमाकत का अच्छा दिग्दर्शन इस कहानी में है। जी हां, हिन्दुस्तान की आजादी और मेरी बर्बादी एक ही साथ हुई। संयोग की बात है-बस, एक जरा सी चूक ने तकदीर का बेड़ा गर्क कर दिया। अब आप जब सुनने पर आमादा हैं तो पूरा किस्सा ही सुन लीजिए। आप तो जानते ही है कि एल-एल० बी० पास करके पूरे तीन साल अदा- लत की धूल फांकी। किसी भी बात की कोर-कसर नहीं रक्सी । चालाक से चालाक मुन्शी रक्खे, बीवी के सारे जेवर बेच-बेचकर मोटी-मोटी कानून की किताबें खरीदीं । वड़िया से बढ़िया सूट सिलवाए। हमेशा बड़े वकीलों का ठाठ रक्खा, पर कम्बख्त वकालत को न चलना था--न चली । जी हां, कमाल ही हो गया। ठीक वक्त पर कचहरी जाता। हर अदालत मे चक्कर काटता । एक- एक मुवक्किल को ताकता, भांपता । एक-एक कानूनी पाइन्ट पर दस-दस नजीरें पेश करता, मगर वेकार । मुवक्किल थे कि दूर ही से कतरा जाते । एक से बढ़- कर एक नामाकूल-घनचक्कर घिसे-घिसाए वकील तो मजे मजे जेब गर्म करके मूछों पर ताव देते घर लौटते ; और बन्दा छूछे हाथ पाता। यह सब तकदीर के खेल हैं साहब, दुनिया मे लियाकत की कद्र ही नहीं है। अन्धी दुनिया है, भेड़ियाधसान है। बस तकदीर जिसकी सीधी उत्तीके पौवारह हैं । अन्त के तन्त मै वकालत को धता बता राजा साहब का प्राइवेट सेक्रेटरी हो गया। जी हां, कह तो रहा हूं--प्राइवेट सेक्रेटरी। यकीन कीजिए। मैं आपको एम्प्लायमन्ट-लेटर भी दिखा सकता हूं। और अर्ज करता हूं कि पूरे सात महीने और सत्ताईस दिन वह चैन की बंसी बजाई कि जिसका नाम ! यानी पूरी तन- ख्वाह, बढ़िया खाना, कोठी-बंगला । पान, सिग्रेट-सिनेमा और दोस्त-महमानो का खर्चा फोकट में । बस, जरा-सी चूक ने सब चौपट कर दिया।

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