पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७२ रजवाड़ो की कहानिया सनकी थे। उम्र ५० को पार कर गई थी। मगर खूब तगड़े दिखाऊ और ठाठ के आदमी थे ! पीढ़ियों की संचित धन-रत्न-सम्पदा चहबच्चो में भरी पडी थी ! बड़े-बड़े बेजोड़ हीरे-मोती-माणिक खजाने में भरे पड़े थे। पोलो, विज और जुआ खेलने में तथा शराव पीने में एक नम्बर थे। धूमधाम की अंग्रेजी बोल लेते थे। सस्कृत के बहुत से श्लोक कण्ठ थे, उनसे पण्डितो पर धाक जमाया करते थे। ज़िद्दी परले सिरे के थे । और भी अनेक गुण थे, एक निराले गुण के खातिर ही तो बे रियासत ही में नही, हिन्दुस्तान भर में प्रसिद्ध हो गए थे। पर सभ्यता के इस बेहूदे वातावरण में हम उसकी चर्चा नहीं करेंगे। इतना जरूर कहेगे कि रानियां, लौडियां, पासवाने व्यर्थ दर्जनों कोडियां थी पर सन्तान के नाम चुहिया भी न थी। खैर, अब पतलून की बात सुनिए---- बनारस के खास कारीगरों को आर्डर देकर उन्होंने सोने के ठोस तारों और चीन के महीन रेशम का कपड़ा पतलून के लिए तैयार कराया । दिन के प्रकाश मे वह कपड़ा सूर्य की भांति चमकता था। उसकी, वम्बई की ह्वाइटवे लेडला की अंग्रेजी फर्म से पतलून सिलवाई। पतलून सीने के लिए खास तौर से एक स्पेशियलिस्ट कारीगर फास से बुलवाया गया। उसपर दिल्ली के १२ चतुर कारी- गरो को रियासत में बुलवाकर ही मोती-जवाहरात टकवाए गए। इन कारी- गरो ने रात-दिन ५० संगीनधारी पहरेदारो के पहरे में २ महीने तक परिश्रम करके ये रत्न कारचोबी और सलमे के सहारे पर पतलून में टांके । कुल जमा पतलून पर डेढ़ करोड़ रुपए की लागत बैठी । पतलून जब तैयार हो गई तो वह राजा साहब के खासगाह में एक शीशे के केस में रखी गई। उसे राजा साहब देखते और मूंछों पर ताव देते थे। वे बहुत खुश थे। और अब उन्हें विश्वास हो गया था कि गान्धीजी की लंगोटी हरगिज-हरगिज इसका मुकाबला नहीं कर सकती । यह पतलून पतलूनों के इतिहास में अद्वितीय है। आखिर यात्रा का समय निकट पाया । यात्रा के लिए राजा साहब के लिए एक समूचे जहाज की व्यवस्था की गई । पतलून की चोरी न हो जाए इस अदेशे से स्काटलैंडयार्ड से ८ मुस्तैद अफसर बुलाकर तैनात कर दिए गए। अमेरिका की एक प्रसिद्ध महिला डिटेक्टिव को पतलून का चार्ज दिया गया । वादशाह जार्ज को खास तौर पर लिखकर राजा साहब ने एक एटीकेट मिनि