पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२८९

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नही २७६ उसने पाकुल नेत्रों से इधर-उधर हरिया की खोज की। और फिर उसकी दृष्टि मां के ऊपर आ टिकी । वह उसी तरह पत्थर की मूर्ति की भांति स्थिर चुप बैठी थीं। क्षण भर उसने मां को देखा, फिर स्थिर गति से रसोई की ओर चल दी । परन्तु इसी समय भोला बाबू लम्बे-लम्बे डग भरते भीतर आकर क्रोष और अावेश में कांपते हुए बोले--कहे देता हूं दाखी, सब बातों तेरी ही नही चलेगी। उसे सजा देना मेरा काम है, मैं उसे ऐसा मजा चखा दूंगा कि जिसका नाम ! अरे वाह, मेरी फूल-सी बेटी के साथ यह धोखाबाजी ! इसीलिए मैंने उसे खर्च देकर विलायत भेजा था ? ऐसा पाजी, रास्कल' ! मैं उसे जेल की ह्वा न खिलाऊं तो भोलानाथ नहीं । और खर्चे की डिग्री तो हुई रखी है। भोला बाबू की गले की नसें ऊपर को उभर आई और चेहरा विकृत हो गया। परन्तु दक्षिणा ने एक शब्द भी मुह से नहीं कहा। पिता की बात सुनने को एक पग भी रुकी नहीं, वैसे ही शांत भाव से रसोई में चली गई। वृद्धा ने कहा-हुआ, अभी तुम जाकर स्नान-पूजा से निपट लो, तब तक मैं थोड़ा जलपान बनाए देती हूं। अब इस समय रसोई तो बन नहीं सकती। मैं भी देखूगी, मेरी बेटी के भाग्य' पर पत्थर मारकर कौन कैसे सुख से बैठता है । पत्नी की बात से भोला बाबू को बहुत सहारा मिला। बेटी ने जो उनके रोष का साथ नहीं दिया, उसकी खीझ पत्नी के इस समर्थन से बुझ गई। उन्होंने थूक निगलकर कहा--देखूमा, देखूगा ! और वे आगे की बात कह न सके। पत्नी रसोई घर में चली गई थी। हरिया साग-तरकारी लेकर पा गया था ] भोला बाबू और कुछ न कहकर स्नान-गृह में घुस गए। उसी दिन तीसरे पहर दक्षिणा को अन्ना दीदी ने पकड़ा । 'अला दीदी दक्षिणा के मुंह से निकला अन्नपूर्णा का कोमलतम संस्करण है। अन्नपूर्णा विधवा है, दो बच्चों की मां है । उसके पति बहुत जमीन-जायदाद छोड़ गए है। वह पढ़ी-लिखी, दुनिया देखी ४० साल की आयु की महिला है। उसने पति के साथ विश्व-भ्रमण किया है, स्त्रियों के अधिकारों की चर्चा सुनी और की है । वह स्त्री-स्वातन्त्र्य की बहुत बड़ी समर्थक है। स्त्रियों की सभा-सोसाइटियों में उसका आना-जाना है। दक्षिणा ने जो उसके नाम का यह कोमलतम संस्करण