पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२९०

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२८० भाव कहानिया किया है, सो खूब प्रसिद्ध हो उठा है। अब तो सभी लोग उसे अन्ना दीदी के नाम से ही पुकारते हैं। अन्ना दीदी जैली पठित और प्रगल्भा रमणी है, वैसी ही मिष्टभाषिणी और स्थिरमति भी है। लोग उससे विवाद-बहस करने का साहस ही नहीं कर सकते, उसकी बात चुपचाप मान लेते हैं । परन्तु जिरा अन्ना को बहुत लोग इतना मानते हैं, प्रादर करते हैं, वह दक्षिणा का मन से प्रादर करती है। स्नेह की बात जुदा है और पादर की जुदा । अन्नपूर्णा जैसी महिला कच्ची श्रायु की मितभाषिणी दक्षिणा का जो इतना आदर करती है, उसका कारण है कि दक्षिणा के गौरव को उसने पहचान लिया है । वह जानती है, वह कुसुम-कोमल वालिका कैसी ज्ञानवती है, स्त्रीत्व के तेज से परिपूर्ण है। उसमे कितना गौरव है। अन्ना दीदी को दक्षिणा की मां ने बुला भेजा था। अपने मन की व्यथा और प्राग दोनों ही उसने रो-रोकर अन्ना को बता दी। उसने मुबकियां ले-लेवर कहा--- अन्नपूर्णा ! भला तुम्हीं कहो, मेरी बेटी के साथ यह अन्याय, घया मै चुपचाप सहलूं ? तुम तो बहुत पढ़ती हो, सभा-सोसाइटियों में जाती हो, स्त्रियो के अधिकारों और स्वार्थों की बड़ी हिमायती हो, क्या मेरी दक्षिणा उस जानवर का ऐसा अन्याय चुपचाप सहन कर लेगी ? अरे, मेरी फूल-सी बेटी पर वह सौत लाया है, सौत ! अन्नपूर्णा को वृद्धा का अभियोग समर्थन-योग्य प्रतीत हुन्मा । वृद्धा की माग सर्वथा उचित थी। दक्षिणा की ओर से अतिपूर्ति और निर्वाह का मुकदमा अवश्य होना चाहिए। अन्नपूर्णा उससे सहमत हुई। परन्तु जब उसने दक्षिणा की 'नहीं' को 'हां' में परिणत करने का मन ही मन संकल्प कर लिया, उसने वृद्धा से एक शब्द भी नहीं कहा, चुपचाप उठकर दक्षिणा के पास गई। दक्षिणा पिता की बैठक साफ करने में लगी थी। वह इधर-उधर बिखरी हुई पुस्तकों, कागजों और सामग्री को सहेजकर ठिकाने से लगा रही थी। उसकी साडी मैली थी, बाल रूखे थे और होंठ सूख रहे थे। पिता को जलपान कराकर जब वह मां को किसी भी तरह खाने के लिए राजी न कर सकी तो उसने स्वयं भी निराहार रहने का तय कर लिया। अन्ना ने आते ही कहासुन दक्षिणा, यह तो मैं जानती हूं कि पुरुष के भोग की जो वस्तु है उनकी जाति की तुम नहीं हो