पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२९२

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२८२ भाव कहानिया माननी होगी। पुरुष बहुत मनमानी कर चुके । मेरा यह दृढ़ मत है कि पति- पत्नी के अधिकार समान हैं । तुम स्त्री होकर स्त्रियों की तरफ से इस दावे का प्रतिकार कर रही हो। 'मैं प्रतिकार नहीं कर रही दीदी, न मैं यह कहती हूं कि वह सत्य नही है । परन्तु तुम नाराज न होना, इस सत्य को सत्य-विलासी दल के नर-नारी के मुह ने भांति-भाति के आन्दोलन करके ऐसा गन्दा कर दिया है कि उसे छूने मे भी घिन होती है।' 'घिन कैसे होती है, तनिक सुनूं तो ?' 'तुम्हारा तो सब देखा-सुना है दीदी, सुनोगी क्या ! विलायत के ही लोगो को देखो, वे कैसी आजादी से प्रेमाभिनय करके कितने उल्लास से विवाह करते है । उनके बीच लो माता-पिताओं के माध्यम की परम्परा नहीं है । स्वेच्छा है, प्रेम है, ठोक-बजाकर किया हुआ सौदा है, फिर क्या कारण है कि तनिक-तनिक सी बातों पर, छोटे-छोटे कारणों को लेकर वहा विवाह-विच्छेद हो जाते है। वहा की अदालतों के लिए, समाज के लिए, स्त्री के लिए, पुरुप के लिए वह एक मामूली बात हो गई है। कहो तुम दीदी, क्या उन्हें ऐसा करने में तनिक भी चोट नहीं लगती ? कही इतना सा भी दर्द नहीं होता ? मैं कहती हूं, यही यदि उनका सत्य-प्रेम है, यदि यही पति-पत्नी के समान अधिकार का सच्चा रूप है, तो यह छूने क्या, अांखें उठाकर देखने के भी योग्य नहीं। मुझे तो यही आश्चर्य है कि वे लोग अपनी सभ्यता का गर्व किस बूते पर किया करते हैं।' अन्ना दीदी की आंखों में आंसू भर गए। यह उराकी हार के प्रांसू थे। उसे जवाब नहीं सूझ रहा था । दक्षिणा सूखे मुंह और मूखे होंठों से अन्ता दीदी की ओर देखती रही, उस दृष्टि को सहन न कर उसने दक्षिणा को खींचकर अपनी छाती से लगा लिया। वह बहुत देर तक उसके सिर पर हाथ फेरती रही। बड़ी देर बाद उसने कहा-कैसे सहेगी दीदी, मेरे पास शब्द नहीं, कैसे तुम्हे सान्त्वना दू। दक्षिणा बहुत देर चुपचाप अन्नपूर्णा की गोद में लेटी रही, फिर उसने सिर उठाकर कहा-~~-दीदी, जल्दी-जल्दी आया करो। दो मिनट ठहरो, मैं चाय बनाती हूं। मां को कुछ खिला-पिला दो, कल से उन्होंने एक बूंद पानी तक नहीं पिया है। 7