पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२९७

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धरती और आसमान कलाकार, जो एक आसफल गृहस्थ है किन्तु सफल कलाकार । पइ कला को सफलता में व्यस्त रहकार पत्नी को अभाव की दुनिया में वसीटता चला जाता है। वह सदा आदर्श के बालमान पर विचरण करता रहा, और कभी अपनी जीवन-संगिनी की ओर देखा भी नही-जो धरती पर रह रही है और अभाव में जिसका जीवन घिस गया है। और अब एकाएक वह उसे देखता है, पति की दृष्टि से नहीं, कलाकार की दृष्टि से । कहानी में यही तथ्य वर्णित है । पूरनमाली का पूरा चांद आसमान पर अपना उज्ज्वल आलोक फैला रहा था और धरती जैले दूध में नहा रही थी। दिन भर लू के थपेड़ों ने आग बर- साई थी श्रीर इस समय ठण्डी हवा बह रही थी। स्निग्ध चांदनी थी, शान्त वातावरण । दूर एकाध पक्षी मन्द ध्वनि कर रहा था । पति ने श्राज दिन भर कड़ा परिश्रम किया था ; कई अधूरे स्कैचों में रंग भरा था ; एक मूर्ति को खत्म किया था ; कुछ नई रेखाएं चित्रित की थीं। इस समय वह छत के खुले सहन में पारामदेह पलंग पर पड़ा सुदूर नक्षत्रों को, जिनकी आभा उज्ज्वल चन्द्रलोक से फीकी पड़ रही थी, ध्यानमग्न देख रहा था । वह शिल्पी था, कलाकार था, भावुक था, मनीषी था। जीवन के पचास साल उसने कला की साधना में गलाए थे। आज वह तोक-द्रष्टा था, दिव्य-द्रष्टा था, विश्व-द्रष्टा था। उसकी गहन कल्पनाएं ब्रह्माण्ड के उस पार तक जाती-अत्ती थीं; उसकी तूलिका शत-सस जनों को जीवन का सन्देश देती थी । उसके अपने ही व्यक्तित्व में अखिल ब्रह्माण्ड समाया हुआ था, विश्व का नुख-दुःख पान उसका अपना सुख-दुःख था। वह अपने लिए बहिर्मुख था, विश्व के लिए अन्तर्नुख । वह अपने को नहीं देख पाता था, विश्व पर उसकी दृष्टि केन्द्रित थी। और इस समय शान्त-स्निग्ध चन्द्रमा के उज्ज्वल-धवल नालोक में अबा- धित रूप से यह उन करोड़ों मील दूर अवस्थित टिमटिमाते नक्षत्रों के निकट जा पहुंचा था वह सोच रहा था : इन नक्षत्रों में क्या सचमुच इसी प्रकार

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