पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

धरती और आसमान २८६ केवल इसलिए कि वह सयम-पाश में बंवा है। उसके पास तीसरे दर्षे का ही टिकट है। अब वह सुभीता होने पर भी उन सुखद फर्स्ट क्लास और सेकेन्ड इलाम के डब्बों में नहीं बैठ सकता, इसका विचार ही नहीं कर सकता। पति की विचारधाराएं धरती से आसमान तक विचर रही थीं । वह अपने में खो रहा था। वह सोच रहा था-इसी तरह तो मनुष्य, जिसे जीवन मिला है, मृत्यु को ढूंढ लेता है। कितना उसका दुर्भाग्य है ! कितनी उसकी मूर्खता है । फिर उसका ध्यान उन सुदूर नक्षत्रों की ओर गया। उस चांदी के थाल के समान क्षण-क्षण पर विकसित होते हुए चन्द्रमा की ओर गया। शीतल, मन्द पवन ने बेला के फूलों की महक लेकर उसके मन में गुदगुदी उत्पन्न कर दी । पत्नी भी पास के पलंग पर लेटी हुई थी, बहुत देर से । आज उसे भी बहुत परिश्रम करना पड़ा था। नौकर बीमार हो गया था। सारा घर और बर्तन साफ करने पड़े थे। बच्चो को नहलाना और उनके कपड़े भी धोना पड़ा था। नौकर के लिए अलग पथ्य बनाना पड़ा था। तीसरे पहर कुछ उसकी मिलने- धानियां आ पहुंची थीं, उनके जलपान-प्रातिथ्य की व्यवस्था करनी पड़ी थी। अाज पूर्णिमा थी, उसका उपवास था । वह इन सब कामों से थक गई थी, उप- वास से कमजोर हो गई थी। अभी उसने यत्किचित् लघु आहार लिया था। वह इस स्निग्ध चांदनी रात में इतनी थकान के बाद इस सुखद पलंग पर पाराम पाकर बहुत सी बातें सोच रही थी। बच्चे सब शीतल वायु के थपेड़ों से सुखद नोद का आनन्द ले रहे थे। दिन भर की घर-गृहस्थी को खटखट, चखपख, वकझक के बाद इस समय के निर्द्वन्द वातावरण में उसे कुछ शान्ति मिल रही थी। फिर भी उसका मस्तिष्क शान्त न था। धोबी उसकी नई साड़ी फाड लाया था। उसकी धुलाई के हिसाब मे पैसे काटने थे। दूध वाले का मुबह ही हिसाब करना था। बच्चों की फीस देनी थी। नौकर तो कल भी काम न करेगा । सारे बर्तन यों ही पड़े थे। प्रोफ, सुबह उसे कितने काम हैं ! रुपए तो 'अगले हफ्ते मिलेंगे । कल बह इन सबको रुपए देगी किस तरह ? एकाएक उसे याद पाया । अरे, राशन भी तो कल ही अाना है। कैसे आएगा ? जैसे उसका सारा आराम हवा हो गया। उसने बैंचंनी से करवट ली। फूल के थाल के समान चाद पर उसकी नजर गई। बड़ी देर तक वह उसे देखती रही। फिर उसने आखें बन्द कर ली। वह सोच रही थी, आज मेहमानों के सामने उसे कितना - -