पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३०१

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धरती और आसमान २६१ शुभ दृष्टि की रस्म अदा हुई थी, तो इसी दृष्टि में शुक्र नक्षत्र जैसा तेज और उज्ज्वल पालोक देखकर किस प्रकार उसके शरीर की रक्त-विन्दु नाच उठी थी, उसका अस्पष्ट जीवन-पथ आलोकित हो उठा था। वहीं दृष्टि आज इतनी मूनी हो गई। श्राज उसपर नजर पड़ते ही मन दर्द से कराह उठा ! उसने और ध्यान से पत्नी को देखा। उसकी साड़ी मैली और फटी हुई थी। दिन भर काम- काज करने के बाद भी उसने उसे बदला नही था, इसलिए नहीं कि उसने बालस्य किया या वह फूहड़ थी। दूसरी धोती उसके पास घी ही नहीं । उसके बाल भी रूखे थे। उनमें न तेल टाला गया था न कंधी की गई थी। उस मैग्नी-पटी साड़ी में, रूखे और उलझे हुए बालों के नीचे उसका सूखा मुह, मुझाए हुए होंठ, चिन्ताकुल प्रांखें-उस टूटी चारपाई पर बिछी फटी चादर पर लेटा हुआ उसका जीर्ण शरीर उसने देखा। हठात् उसके मन में एक बात प्राई : पाह, अपने जीवन में अपनी तूलिका से मैंने इतने चित्र बनाए ! जीवन को इतना रंग दिया । लेकिन यह जो जीवित चित्र मैने बनाया है, इसपर तो मैंने ध्यान ही नहीं दिया। इसके सम्मुख मेरे अब तक के बनाए हुए सारे चित्र हेय हैं, सब निर्जीद है, सब नकली है, असत्य हैं। उनमे सौन्दर्य है, प्रकाश है, रंगीनी है, पर जीयन कहां है ? वे जीदित कहाँ है ? जीवित चित्र केवल यही मैं बना पाया हूँ। निस्सन्देह यह चित्र मेरा ही बनाया हुआ है। मेरी यह पत्नी वह नहीं है जो अब से बीस साल पहले ब्याह कर पाई थी। यह तो मेरे द्वारा बनाई हुई मूर्ति है । इसे बनाने में मुझ कलाकार के बीस वर्ष लग गए, निस्सन्देह अरेस वर्प ! इन बीस वर्षों में उसके गुलाबो चसकदार गालों को पीला पिचका हुआ बनाया गया, उन पर मुरियों की रेखाएं अक्ति की गई। इन नेत्रों का मादक तेज, कटाक्षों का विद्युत्प्रवाह धो-पोंछकर इनमें अमिट सूनापन पैदा किया गया। प्रेम का आमन्त्रण-सा देने वाले इन सरस होंठों को सुखाकर उन्हें फीका किया गया। उन्नत युगल यौवनों को इहा दिया गया। अब वे उसके अतीत यौवन के एक प्रामाणिक इतिहास बन गए थे। उसकी वह मृदुल-सुचिक्कण अलकाबलियों को जंगली झाड़ियो का रूप दे दिया गया था। आप कह सकते हैं कि यह तो रूप को कदरूप कर दिया गया। सो इससे क्या मेरी कला सोप होगी ? कलाकार सौन्दर्य के उन्माद कर ही चित्रण करने