पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३०२

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२६२ भाव कहानिया - का ठेकेदार नहीं है, वह कदरूप भी सर्जन करेगा। उसका काम मदिरा की बोतल भरना नहीं, सत्य के दर्शन करना है, सत्य को मुर्त करना है-वह सत्य जो शताब्दियों-सहस्राब्दियो से होता आ रहा है, होता रहेगा। यही तो उसकी कला है । मैंने यही किया। पत्नी की ओर पति ने प्यार-भरी चितवन से देखा। वह चाहता था कि अपनी इस कृति को, जिसे उसने प्रकृति पर विजय पाकर बनाया है, प्यार करे। परन्तु वह उस समय थकान से चूर-चूर होकर सो गई थी। वह गहरी नीद में सो रही वह चौंक पड़ा । ओह ! यह गहरा विश्राम तो इस जीवित चित्र की एक 'भिन्त ही रेखा है, इसका तो मैंने विचार ही नहीं किया था। मैं सोच रहा था कि इस अपरूप को जीवन मैंने दिया। परन्तु अब समझ रहा हूं कि यह जो उसके व्यस्त जीवन में बीच-बीच में ऐसे ही गहरे विश्राम के विराम निरन्तर बीस वर्ष तक होते रहे, उसीने उसमें जीवन कायम रखा है। वह लज्जित हुआ । ठीक, ठीक यह त्रुटि रह गई। उसके माथे में रेखाएं पड़ गई। वह सोचने लगा : इस विराम का तो चित्रण शायद न हो सकेगा। फिर जीवन से उसका सामंजस्य कैसे स्थापित हो पाएगा। वह कुछ भी निर्णय न कर पाया । वह पति भी था और कलाकार भी। इस समय पति भी कुछ सोच रहा था और अपनी पराजय पर लज्जित भी हो रहा था, परन्तु कलाकार गम्भीर था । वह और भी गहरी बात सोच रहा था। वह सोच रहा था कला के अपने दृष्टिकोण के सम्बन्ध में। वह सोच रहा था कि यही गहरा विश्राम यदि चिरविश्राम में परिवर्तित हो जाए तो फिर मेरी यह मूर्ति मेरी कला की प्रतिष्ठा-भूमि पर अप्रतिम रहेगी तो? पत्नी ने उसके विश्रान्त अभिशप्त मुख पर दृष्टि जमाई । उज्ज्वल कौमुदी का विस्तार करता हुआ चन्द्रमा, सुदूर गगन में टिमटिमाते तारे सभी देखते रह गए। कलाकार ने मूर्ति की प्रतिलिपि तैयार की। इस भय से कि कहीं काल उसकी रेखाओं में हस्तक्षेप न कर दे, उसने पत्थर ही पर हस्तक्षेप किया। प्रतिलिपि उसी पति की पत्नी थी-वही सूखे होंठ, सूनी दृष्टि, बुझी हुई चितवन, ढले हुए गाल और परास्त यौवन । इस मूर्ति में कलाकार ने अपनी