तिकडम नमक मिच लगाकर तुम्हीन तो उसका चर्चा की थी . र भुनाथ ने गुरकिर कहा~मगर मुझे क्या मालूम था कि तुम पक्के पानी हो ! दगाबाज; बेईमान'.. 'पाजी-ऊजो तुम हो ! मैं सिर्फ तिकड़मवाज हूं। तुम सुनते हो या मैं चला जाऊं? सवने कहा-~-मुनाप्रो गार, यह तुम्हारी तिकड़म बड़ी बेढब रही। धीर-गम्भीर स्वर में रामनाथ कहने लगा। सिगरेट बुझ गई थी, उसे फेंक दिया-सगाई पक्की हो गई । सुनकर मेरी बांछे खिल गई। गाजियाबाद अब मैं तीन-चार दिन में जाता था। घरवाली कहती-सुनती तो मैं दो-चार गालियां दफ्तर बालों को सुना देता था : इतना काम दे रखा है कि नाक में दम है ! आखिर सगाई चड़ी, लगन आई, और सव टेहले भुगते गए। दारात में इने-गिने अादमी थे, भण्डा-फोड़ होने के डर से दिल्ली से दोस्तों का बायकाट कर दिया था। दस-पांच बड़े-बड़े ले लिए थे। हमारे साले साहब भी बुलाए गए थे, उन्होंने लिखा था, 'छुट्टी मिल सकी तो पाने की कोशिश करूंगा।' गरज ठीक समय पर बारात चली । जरा देर की फुरसत निकालकर गाजियाबाद हो प्राया । घरवाली से कहा : एक बारात में जाना पड़ रहा है। दो-तीन दिन लगेंगे, जरा होशियार रहना । और फिर मैं उवटना करा, जामा पहिन, भट नौशा बन, नई सुसराल को बारात ले चल दिया ! मि० रामनाथ दिल्ली के एक बैंक में क्लर्क हैं। वे मेरे बहनोई होते हैं । मेरी छोटी बहिन उन्हें व्याही है। रंगीली तबियत के आदमी हैं ! दो महीने पहले खबर मिली थी कि बहिन का इस्तकाल हो गया, बड़ा अफसोस हुआ } मैं तब न पा सका था। पिताजी और बड़े भाई पाए अब जो शादी का निमन्त्रण पहुंचा तो फिर मुझे पाना ही पड़ा। टूटे रिश्ते का बहुत ख्याल रखना पड़ता है। पिताजी ने भी लिख दिया कि उरूर पाना । मैं वक्त के वक्त ही पहुंचा । पता लगा, बारात इसी गाड़ी से जा चुकी है। लाचार मोटर से जाने का इरादा किया और लारी में बैठकर चल दिया। गाजियाबाद मे लारी कुछ देर को रुकी। गरमी तेज यी, सोचा एक गिलास शर्बत पीकर पान खा लूं। सामने ही दुकान थी। शरबत पी रहा था कि एल
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