पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३२९

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+ कौतुक कहानियां लड़के ने पाकर कहा-अापको बीबीजी बुला रही हैं। मैं बड़ा अकचकाया, पूछा---कौन बीवीजी? उसने सामने के चिक पड़े एक दुमंजिले बरांडे की ओर उंगली उठाई। कोई स्त्री चिक उठाकर हाथ से इशारा करके बुला रही थी। दूर होने के कारण पहचान न पाया। पास जाकर देखा तो बहिन है ! पहले पाखों को धोखा हुप्रा । मैं पैर बढ़ाकर एक ही सास में ऊपर चढ़ गया। बहिन ही थी । वहां हंस रही थी, और मेरी आंखों से 'धड़ाधड़' प्रांमू बह रहे थे । बहिन की हंसी होंठों में रह गई। उसे घर में किसी अनिष्ट की श्राशंका हुई । उसने घबराकर कहा-भैया, हुआ क्या है, कहो तो? घर में सब अच्छे तो हैं ? मैंने सिर हिलाकर कहा-सब अच्छे हैं। पर बीवी, तू तो मर गई थी ! 'मैं मर गई थी ? यह खूब कही ! मैं तो यह खडी हूं। तुमसे किसने कहा ?' मैंने अांखें पोंछी, फिर मलीं और प्रांखें फाड़कर बहिन को देखने लगा। बहिन ने कहा- भैया, क्या तुम्हारा सिर फिर गया है ? 'तो तुम मरी नहीं हो ?' मैं धम से कुर्सी पर बैठ गया । वहिन जल्दी से एक गिलास शरबत बना लाई और जबरदस्ती मुझे पिला दिया। फिर हंसकर कहा-अब देखो, जिन्दा हूं या नहीं ? मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, कहा-बेशक तुन जिन्दा हो मगर.. 'मगर क्या ? 'जीजाजी कहां है ? 'वे एक बारात में गए हैं।' 'यहां कब आए थे ?' 'अभी सुबह ही तो गए है।' 'वे यहां रोज आते हैं ? 'आजकल दफ्तर में काम बहुत है, इसीसे अक्सर रात को वहीं रह जाने हैं । अाजकल नौकरी का मामला ऐसा ही है भैया !' अब मैं मामला कुछ-कुछ समझा, मैंने कहा-जीजाजी ने तो खेल अच्छा खेला । खैर देखा जाएगा, तुझे अभी मेरे साथ चलना पड़ेगा। अभी । . 'कहां it