पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३३१

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३२० कौतुक कहानिया 1. कह देते- तुम गधे हो। 'मैं गधा क्यों हूं?' 'इसलिए कि यारों को नहीं ले गए। यार लोग गए होते तो तुम्हारी ऐसी पूजा होता क्या मजाक श्री ? ले-लेकर हार्कीस्टिक जो टूट पड़ते तो कयामत वर्षा कर देते और लाखों में ब्याह रचाकर आते !' 'मगर यार, तुम घरवाली और पुराने साले-सुसरों को देखकर झेप क्यों -~-तुम भी मुकरिर रहो, ये भी रहे ! विशाल-उदार हिन्दू-धर्म में सबके लिए जगह है, अंग्ग्रेजों ने भी कानून में दरवाजे-खिनिया छोड़ रखी है !' 'मैंने बहुत कहा यार, मगर साले लोगों ने अधेर मचा दिया। समझदार तो थे नहीं, बस लगे चरनदास से पूजा करने ! एक तो देहाती, दूसरे जवान हटे- कट्ट, तीसरे उसका घर । लाचारी हो गई !' दोस्तों ने मूंछे मरोडी और पास्तीने चढ़ाई-वाह यार, चलो एक बार फिर। लाखो मे शादी कराएं। नहीं तो डोला उठा लाएं । भला जिसका तेल- बान चढ़ गया उसकी शादी कहीं और हो सकती है ? रामनाथ का चेहरा सफेद हो गया। सिगरेट फेंककर उसने कहा-वह मौका अब नहीं रहा। दोनों सुसरो ने मिल-मिलाकर झगडा खत्म कर लिया। सुसर नम्बर दो कहने लगे-~~-मेरी इज्त अब कैसे बचे ? इसी मंदे पर लड़की की शादी अब कैसे हो ? सुसर नम्बर एक बोले-यापकी इज्जत हमारी इज्जत है। मेरा लड़का हाजिर है । झट देखते-देखते पाजी साले को जामा पहिना दिया गया । घोडी पर चढ़ाया गया, बाजे बजने लगे । सब नेग टेहले भुगतने लगे- मुझे जैसे सब भूल ही गए ! 'फिर तुमने क्या किया? क्या भाग आए 'भाग कैसे सकता था ! सुसर नम्बर एक ने एक न सुनी ; कहने लगे-~- तुम हमारे भान हो, जा कैसे सकते हो?' 'भई वाह, तो तुम सालिगराम के व्याह में दूल्हे से बराती बन गए । भई रहा खूब ! रामनाथ विगड़ गए । कहने लगे-तुम्हें भी यही करना पड़ता। एक बार फिर दोस्तों में कहकहा मचा। और मि० रामनाथ ठण्डी सांस भरते, पाह-ऊंह करते उठकर रफूचक्कर हुए। ..