पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/८८

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बादिन मैं इसपर भी रहम किया चाहता हूं। इसे नौकरी से दरखास्त किया जाता है और इमका दर्जा इस नौजवान को पता किया जाता है। इसकी तमाम जायदाद जन्त की जाती है और वह उस कहार के घर वालों को वख्श दी जाती है । हुक्म देकर बादशाह उठे। तुरन्त चार वांदियों ने सहारा दिया। दरबारी लोग जमीन तक झुक गए। बादशाह ने युवक के निकट आकर कहा-पाराम होने तक शाही महलों में रहने की तुम्हे इजाजत बख्शी जाती है और शाही हकीम तुम्हारे मालजे को मुकर्रर किए जाते हैं। युवक ने बादशाह की कदमबोनी की और पल्ला चूना । बादशाह धीरे-धीरे अन्तःपुर में प्रवेश कर गए। अन्तःपुर के उन झरोखों के भीतर, जहां किसी भी मर्द की परछाई पहुंचनी सम्भव न थी, एक बहुमूल्य मखमली गद्दे पर वह घायल युवक पड़ा अपने प्रारब्ध- विकास की बात सोच रहा था । एक ही दुःखदायी घटना ने, जिसे शायद ही कोई निमन्त्रित करे, उसके भाग्य का पांतर पलट दिया था। वह सोच रहा था, क्या सचमुच मेरे ये फटे चिथड़े, वह टूटा छप्पर का घर, वह माता का चक्की पीसना, सभी बदल जाएगा। वह जागते ही जागते स्वप्न देखने लगा-एक धवल अट्टालिका, दास-दासी, घोड़े-हाथी, सेना और न जाने क्या ? सभी विचारधाराश्नों के पर उसे एक नवीन विचारधारा मूच्छित कर रही थी-~~वह कौन है ? वही क्या इस सब भाग्य-परिवर्तन की कुंजी नहीं ? पालकी के उस दुर्भे पर्दे के भीतर......! वह सोच में मूच्छित हो गया। हठात् उसकी विचारधारा को धक्का देते हुए कक्ष का पर्दा हटाकर दो दासियों के साथ एक खोजे ने प्रवेश किया। दासियों के हाथ में भोजन की सामग्री थी । स्वप्न-सुख की तरह कहीं वह राजभोग लुप्त न हो जाय, घायल युवक इस भय से लपककर उठा। खोजे ने कहा- खाना खा लो, और खुदा का शुक्र करो। हुजूर शाहजादी नुमपर बहुत खुश हैं और वे जल्द तुम्हें देखने को तशरीफ लाने वाली हैं। चन्द्रमा की स्निग्ध ज्योत्स्ना की तरह शाहजादी ने कक्ष में प्रवेश किया।