पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/१२१

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समझने का ब्रिटिश राजनीतिज्ञों का प्रयत्न व्यर्थ ही है । नये सहायक भारत मन्त्री, जिन्हें परिस्थितिका विशेष ज्ञान नहीं है और जिनके विचार विण्टरटन के अर्ल होने के कारण पहले से रंगे हुए हैं, केवल उसो सलाह के सहारे अपना काम चला सकते हैं जो उन्हें शिमला एवं दिल्ली से नौल कर दी जाती है। कामन्स सभामें भारतके सम्बन्धमे विवाद होते समय उक्त अले महोदयने इन वाक्योंका उच्चारण किया---

"भारत सरकारने तब तक ठहरना उचित समझा जबतक महात्मा गान्धीके राजनीतिक सिद्धान्तों की असारता एवं रचनात्मक परिणामों को उत्पन्न करने में उसकी पूर्ण विफलता देखकर उनके अधिक समझार समर्थकों का भ्रम दूर हो जाय । इसके बाद उनके अनुयायियोने अपेक्षाकृत उदासानताके साथ उनका पतन स्वीकार किया। जिस अपढ़ जनताका उनका नाम जपनेका पाठ पढ़ाया गया था और जो प्रतिज्ञा स्वराज्यकी तिथिकी बाट जाह रही थी एवं जिसे उसने कई बार बीनते हुए भी देखा था, उसो जनताकं सामने गान्धीजीकी अस्वाभाविक शक्तिका बुलबुला बातकी बातमें फूट गया ।

महात्माजी की अस्वाभाविक शक्ति का बुलबुला

सारी मनुष्य जाति के पांचवें भाग (भारतीयों) की राजनीतिक जागृति ही—जिसमें, यह सत्य है, कभी कभी दो एक अवाञ्छित घटनाएं भी हो जाती हैं--- यहांपर·रचना-