उनका व्याख्यान तक सुनना अस्वीकार किया। महात्मा गांधी तथा अन्य प्रसिद्ध कार्य-कर्ताओं ने अपने लेखों द्वारा इसकी तीव्र निन्दा की है।किन्तु यह स्पष्ट ही है कि नरम दल घालों के विचार देश के नौजवानों को इतने असह्य हो गये है कि वे अपनी भारतीयता भूल जाते हैं और पश्चिमी ढंगों द्वारा अपना असन्तोष प्रगट करते हैं। असल बात यह हैं कि सारे विद्यार्थी स्कूलों ओर कालेजों को इस कारण नहीं छोड़ते कि उन्हें शिक्षा पाने के निमित्त अन्य कोई स्थान नहीं है। इसका कारण यह नहीं है कि असहयोग का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है उनके लिये एक ओर कुआँ है तो दूसरी ओर खाई। वे यह भलो भांति समझते हैं । असहयोग की नैतिक विजय ता परी हुई है। उसके कारण सरकारी पाठशालाओं की प्रतिष्ठा गिर गयी है और उनमे प्रचलित बुरी बातों से विद्यार्थी सचेत हो गये हैं।
राष्ट्रीय विद्यालय
राष्ट्रीय विद्यालयों की आवश्यकता देखते हुए उनकी संख्या अपर्याप्त है, इसका उल्लेख किया जा चुका है। देश में जिस प्रकार का संग्राम जारी है उसके कारण राष्ट्रीय स्कूलों और कालेजों का पूर्ण संघटन रुका रह गया,किन्तु विद्यार्थियों एवं अध्यापकों के उत्साह के कारण उनका कार्य,अयोग्य और अपर्याप्त रूपले भले ही कहिये, बरा बार चलता रहा। बार---