बोली के प्रास्तावों के कारण यह हुआ कि सरकारी स्कूलों.
के विरुद्ध क्रियात्मक प्रचार बन्द कर दिया गया और
भिन्न भिन्न कांग्रेस कमेटियों की शक्ति सरकारी स्कूलों और
कालेजों के विद्यार्थियों को आकर्षित करने के अभिप्राय से राष्ट्रीय
विद्यालयों के संघटन तथा उनमें प्रचलित शिक्षा के सुधार की
ओर लगा दी गयी । सारे देशके राष्ट्रीय विद्यालयों की
धर्तमान दशा सन्तोषजनक नहीं है । वे सब बड़ी कठिनाइयों
और असुविधाओं का सामना करते हुए वीरता पूर्वक अपना
अस्तित्व बनये हुए हैं । अध्यापकों को वेतन मिलता है
उससे केवल जीवन निर्वाह ही हो सकता है । विद्यालयों की
इमारतं प्राय: किराये पर ही ली गयी हैं और वे इस
कार्य के लिये अनुपयुक्त हैं । अधिक विद्यालयों में प्रायः वहीं
पाठ्यक्रम रखा गया है जो सरकारी स्कूलों मे प्रचलित है।
हां, इतना जरूर है कि उनमें चरखा करघा, एवं हिन्दी का
सिखलाया जाना भी आवश्यक रखा गया है ।
यद्यपि इन विद्यालयों की पढ़ाई में बहुत ही थोड़ा परिवर्तन किया
गया है तोभी यह देखकर ही कि वे सरकारी सहायता के
बिना चलाये जा रहे हैं उनके अध्यापकों और विद्यार्थियों के
चरित्र और विचार दृष्टि में स्पष्ट परिवर्तन हो गया है ।
वकील, मुवक्किल और अदालतें
विद्याथियों तथा स्कूलों और कालेजों के विषय में जो कुछ
कहा गया है, आवश्यक परिवर्तन के साथ वही बात