हाने का काम लिया। इसमें उन्होंने सरकार की जो सहायता को उसके लिये अफीकन सरकार तथा ब्रिटिश सरकार दोनों ने इनकी प्रशंसा की थी। युद्ध समाप्त होते ही स्वास्थ्य सुधारने के लिये महात्माजो १९०१ में पुन: भारत लौट आये। यहीं पर पहले पहल उन्होंने कलकत्ता कांग्रेस में भाग लिया था। इस समय तक नेटाल में भारतीयों को अवसा नितान्त शोचनीय हो गई थी। उनकी अवस्था को जांच करने के लिये मिस्टर चेयरलेन नियुक्त किये गये थे। महात्मा गान्धीको भारतीयों को ओरसे प्रतिनिधि बनकर जानके लिये अफ्रिका रवाना हाना पड़ा। इसी तरह ट्रांसवाल के भारतीयों की भी आपने सहायता की थी। इन सब कामों से छुट्टी पाकर आपने ट्रांसवाल की अदालत में अपना नाम दर्ज कराया और अटर्नीका काम करने लगे। पर भारतवामियों को रक्षाका ध्यान ही उनका प्रधान लक्ष्य था। इसी के निमित्त उन्होंने ट्रान्सवाल इण्डियन असोसियशन नाम की संस्था स्थापित की और आपही उसके मन्त्री बन गये। भारतीयों की दशाका परिचय करानेके लिये उन्होंने इण्डियन ओपीनियन नामका पत्र निकाला और वादको पोनिक्स सेटिलमेंट स्थापित किया। इसका कारण रस्किन का प्रभाव तथा दक्षिण अफ्रिका में मजूर और पूंजी का कलह था। जिस समय जोहान्स्वर्ग मे मीषण प्लेग उपस्थित था उन्होंने अपनी जान जोखम में डालकर सरका रको सहायता की। १९०६ में जब वहांके निवासियों ने उपद्रव किया तो महात्मा जीने आहतोंके
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