करता, वल्कि इस वातसे है कि धैर्य और शान्तिके शस्त्रोंका
प्रयोग करके वह अपने अन्तर्गत सभी बुराइयों और दुर्बलता.
ओंको मिटानेकी चेष्टा करता रहे। क्योंकि सम्भव है कि
जो मुझे अच्छा और गुण प्रतीत होता हो वही दूसरेको
बुरा और दुर्गुण प्रतोत होता हो। धैर्य के माने यह हैं कि
अपने स्वयं कष्ट उठाना। इसलिये सत्याग्रहक सिद्धान्तका
असली रूप यह हुआ कि इस व्रतको स्वीकार करनेवाला आत्म-
बलपर सदा निर्भर रहकर अपने शत्रु को किसा तरहका कष्ट न
देकर अपनी साधनाको पूरी करने के लिये, जिस निमित्त सत्या.
प्रहका व्रत धारण करता है, उसे प्राप्त करनेके लिये, स्वयं कष्ट
भोगेगा।
अब प्रश्न यह उठता है कि राजनैतिक क्षेत्रमें सत्याग्रहका
क्या अभिप्राय हो सकता है ? राजनैतिक युद्ध-जहां सत्याग्रहके
प्रयोगकी आवश्यकता पड़ेगो-प्रायः राजा और प्रजामें होगा।
उस अवस्थामे बुराइयोंका एकमात्र प्रतिकार अत्याचारी नियमों-
का विरोध करना है। मान लीजिये कि व्यवस्थापकोंने किसी
काननको बनाया जो सर्वथा जालिम और अत्याचारी हैं। प्रजाने
अनुनय विनय तथा प्रार्थना पत्र द्वारा उन नियमोंमें परिवर्तन
तथा सुधारके लिये यत्न किया। व्यवस्थापकोंने उसपर कान
न दिया। अब प्रजाके लिये दो ही मार्ग रह गये। यदि वह उन
बुरे काननोको स्वीकार करना नहीं चाहती, तो वह बल
प्रयोगसे व्यवस्थापकोंको लाचार कर दे कि वे उसकी बात