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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/१७४

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सत्याग्रहकी मीमांसा


व्यवस्थापकोंकी बेईमानी और अन्यायके प्रति अपनी नाराजगी दिखलाने के लिये वह प्रचलित शासन प्रणालोके साथ या राज्यके साथ असहयोग कर लेता है। उस अवस्थामें वह राज्यके उन अन्य नियमोंकी भी अवज्ञा करता है जिनके ताड़नेसे चारित्रिक पतनकी सम्भावना न हो ।

मेरे मतसे सत्याग्रहका व्रत इतना पूर्ण तथा महान् है और इसके सिद्धान्त इतने सरल है कि इसकी शिक्षा छोटे छोटे लड़कों तकको दी जा सकती है। इसकी शिक्षा मैंने हजागें उन नर नारियों, वालवृद्ध तथा युवकोंको दी थी जिन्हें लोग शर्तबन्द कुली कहते हैं और यह लिखते मुझे अतिशय प्रसन्नता होती है कि इसमें मुझे पूरी सफलता मिली ।

रौलट बिल्स

इसी सिद्धान्तके आधारपर मैने रौलट बिलोंका विरोध किया। जिस समय गैलट बिलोंका मजमून सरकारी गजटमे निकला मैंने उन्हें पढ़कर देखा कि मनुष्यको स्वतन्त्रताको छीननेका उनमे इतना जबर्दस्त बल है कि उनका विरोध पूर्ण शान्तिके साथ होना आवश्यक है। मैंने यह भी देखा कि प्रत्येक विचारवान भारतवासोका यही मत है। मैं इस बात को जोर देकर कह सकता हूं कि कितना भी उच्छृखल शासन क्यों न हो उसे इस बातका जरा भी अधिकार नहीं है कि वह ऐसे कानन बनावे जिसके द्वारा सारी प्रजा पर एक साथ हो बज्रपात