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सत्याग्रह आन्दोलन


हो, फिर भारत सरकारके विषयमें तो यह बात और भी अधिक लागू है क्योंकि उसका सच्चालन स्थिर सिद्धान्त और नियमोंके द्वारा होता है। मैंने यह भी देखा कि यदि बलप्रयोग, रक्तपात और असफलतासे इस अन्दोलनकी रक्षा करनी है तो इसके लिये कोई निर्दिष्ट मार्ग बना लेना भी आवश्यक होगा, जिस परसे होकर लोग चलें।

छठी अप्रैल

इतना देख भालकर मैंने यही स्थिर किया कि ऐसी अवस्थामे एकमात्र सत्याग्रह ही हमारा रक्षक हो सकता है। निदान मैंने देशके सामने सत्याग्रहका सिद्धान्त रखा। मैंने इसके सविनय प्रतिरोधके अंगपर विशेष जोर दिया। मैं पहले ही लिख चुका हूं कि सत्याग्रहका मूलमन्त्र अन्तरात्माकी पवित्रता है, इसलिये मैने अनुरोध किया कि छठी अप्रेलको लोग सारा कामकाज बन्द कर दें, दिन भर ( २४ घंटेतक ) उपवास करें, तथा आत्मशुद्धिके लिये ईश्वरसे प्रार्थना करें। यह काम इतना जल्दी किया गया था कि न तो इसके लिये किसी तरहका संगठन हो सका था और न किसी तरहकी तैयारी कीगई थी। फिर भी समस्त भारतकी जनताने इसको जिस प्रकार अपनाया उसका उदाहरण नहीं। यहांनक कि सुदूर देहातोंमें भी छठी अप्रेल मनायी गई। मेरे मनमें यह बात ज्योंही आई थी मैंने उसे प्रगट कर दिया था। छठी अप्रेलको जनताने