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सत्याग्रहकी मीमांसा



किसी तरहका बल प्रयोग नहीं किया और न पुलिसके साथ कोई ऐसी दुर्घटना हुई जिसका वर्णन किया जा सके। हड़ताल आपसे आप हुई थी। लोगोंने अपनी इच्छाके अनुसार ही हड़ताल किया था।

मेरी गिरफ्तारी

छठी अप्रेलके उपवास और व्रतके बाद हो सविनय अवज्ञा प्रारम्भ होनेवाली थी। इसके निमित्त सत्याग्रह सभाकी निर्धारिणी समितिने चन्द सिविल कानूनोको चुना, जिनको तोड़नेका निश्चय था। इनमेसे एक कानून यह भी था कि जन्त पुस्तकोंको खुले तौर पर बांटना और बेंचना। यह काम हम लोगोंने जोरोंमें जारी किया और अनेक जन्त पुस्तकें बेंची और बांटी जाने लगी।

उपद्रव

छठी अप्रेलने भारतमे एक अपूर्व ज्योतिका उदय कर दिया। लोगोंके हृदयोंमें वह प्रकाश और वह शक्ति आ गई जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। जिन लोगों के दिलोंमें लाल पगड़ीका हौआ समाया था वे अब बड़े बड़े अधिकारियों तककी परवा नहीं करने लगे। इसके अतिरिक्त आज तक साधारण जनता उदासीन पड़ी थी। नेताओंने उन्हे जगानेका प्रबन्ध नहीं किया था, उनका सच्चालन नहीं किया था। निदान उनमें संगठनका सर्वथा अभाव था। उनके हाथमें एक बलिष्ठ अस्त्र आ गया सही