पर न तो वे इसको समझ सकते थे और न इसके प्रयोगके बारेमें
कुछ जानते थे।
दिल्लीका जनता जो आजतक निश्चेष्ट और उदासीन पड़ी थी, एकाएक उठ खड़ी हुई। वहांके नेतागण उनपर अधिकार न कर सके। अमृतसर की अवस्था भी नाजुक थी। डाकृर सत्यपालने मेरे पास लिखा था कि आप यहां आकर लोगोंको सत्याग्रहका ममं सुना जाइये नहीं तो महा अनर्थ होगा। इस समय भी दिल्लीसे स्वामी श्रद्धानन्दने तथा अमृतमरसे डाकृर सत्यपालने लिया कि जनता उत्तेजित हो गई है। आपके आनेस शान्ति हो जानेकी संभावना है। इसलिये आप चले आइये । इस निमित्त न तो मैं कभी पज्जबमे ही गया था और न अमृतसग्मे ही । अधि. कारियोंने इन दोनो पत्रोंको पढ़ लिया था और वे जानते थे कि मेरी इस यात्राका उद्देश्य शान्तिमय है।
आठवीं अप्रेलको मैंने बम्बईसे दिल्ली और पज्जाब जानेके लिये
प्रस्थान किया। मैंने डाकृर सत्यपाल को तार दे दिया था कि
मुझसे दिल्लीमें मिलिये क्यो कि मेरा इनके साथ कभी पहले.
का परिचय नहीं था। मथुरा पहुंचते न पहुचते मुझे
सरकारी सूचना द्वारा दिल्लो प्रान्तमें प्रविष्ट होनेसे रोका
गया। मैंने देखा कि इस आज्ञापत्रको मैं स्वीकार नहीं कर
सकता। मैंने इसकी लवज्ञा की और आगे बढ़ा। पलवाल
पर मुझे दूसरी नोटिस मिली। इम नोटिसके द्वारा मेरो
पंजाबमें प्रवेश रोका गया था और बम्बई प्रान्तके बाहर कहीं