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सत्याग्रहकी मीमांसा
करिवाई

सरकारी कार्रवाई एकदम अनुचित थी। लोगोंपर राज- विद्रोहका अभियोग चलाना सरासर भूल थी। इस आचरणसे सरकारने लोगोंके साथ बड़ी सख्तीका बर्ताव किया और कहीं कहीं अधिक दण्ड प्रदान किया। क्षतिपूर्तिके लिये अहमदाबाद नगरपर जो जुर्माना बैठाया गया वह अनुमानसे भी कहीं अधिक था और जिस तरह यह जुर्माना गरीब मजूरों और कुलियोंसे वसूल किया जा रहा था नितान्त क्रूर और उत्तेजक था। मेरी समझमे नहीं आना कि गरीब मजदूरोंपर एक लाख सरसठ हजार रुपया जुर्माना ठोक देना कहांका न्याय था। बरेजडोहके किसानोंसे तथा नदियादके बनियों और किसानोंसे जो रकम वसूल की गई थी उसमें करता और बदलेकी बू आती थी। मेरी समझमें अहमदाबादमें मार्सल लाके जारी करनेका भी सरकारके पास कोई यथेष्ट कारण नहीं था और न इसकी आवश्यकता ही थी। इसके प्रयोगमे जिस लापरवाही और बेरहमीसे काम लिया गया है, उससे हजारों बेकसूरोंकी जाने मुफ्तमें गई है।

मेरी समझमें बम्बईके अधिकारियोने इस समय दूरदर्शिता और धीरतासे काम लिया, क्योकि उस समयकी अधिकारियोंको उत्तेजनाकी प्रवृत्ति और जनताके अविश्वासका स्मरण करके उनके आचरणपर आश्चर्य होता है। विशेष कर ऐसे समय जब कि जनताकी उस गाडीको उलट देनेकी चेष्टाके कारण-जिसमे