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सत्याग्रह आंदोलन


कारवाईस नहीं हो सकता था। क्या सरकारको उस कानूनके सुधारकी आवश्यकता दिखलाकर उसमे उचित संशोधन नहीं किया जा सकता था?

उत्तर-मैंने अतिशय विनीत भावसे दीनतापूर्वक लार्ड चेम- स्फोर्डसे प्रार्थना की। मैने इस विधानकी अनुपयोगितापर उनसे वादविवाद किया। इसी तरह का वादविवाद मैंने उन अन्य अंग्रेज अफसरोके साथ किया जिनसे मैं मिल सका । मैने अपना मत उनके समक्ष रखा। पर उन लोगोंने एक स्वरसे यही उत्तर दिया कि हमलोग लाचार हैं ओर रौलट कमेटीने जा शिफारिसे की है उनपर अमल किया जाना नितान्न आवश्यक है। इस तरहके प्रतीकारके जितने तरीके थे मबसे हम लोगोने काम लिया पर सब निष्फल हुआ।

प्रश्न-अदि आपका किसीसे मतभेद है तो आप उसे एक ही दिनमें अपने मतका नहीं बना सकते। इसके लिये आपका कुछ समय तक धैर्यपूर्वक अनवरत चेष्टा करनी होगी। ऐसा न करके एकदमसे काननोको भङ्ग करनेके लिये तुल जाना क्या उतावलापन नहीं कहा जायगा ?

उत्तर--इस विषयमें मेरा आपसे घोर मतभेद है। यदि मुझे विदिन होता है कि स्वयं मेरे पिताने मेरे ऊपर ऐसे कानुनका योझ लाद दिया है जो मेरे आत्मगौरवके सर्वथा प्रतिकूल है तो यदि मै विनयपूर्वक उनसे निवेदन कर दूं कि मैं इसको न माननेके लिये विवश हूं तो इसमे मै किसी तरहकी ज्यादती नहीं करता।