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सत्याग्रहकी मीमांसा


हड़तालके दिन पुलिसकी हर तरहकी आशायें विना किसी तरहके इतराजके मानी जानी चाहिये ।

प्रश्न-क्या आप अपने बयानको किसी तहरीर द्वारा तसदीक करेंगे?

उत्तर-जो कुछ कागजी तहरीरे मेरे पास हैं उन्हें मैं अदा लतमें पेश कर दूंगा ।

प्रश्न-क्या आप दिल्ली जाकर अधिकारियोंका विरोध नही करना चाहते थे? क्या आपका यह इरादा नही था ?

उत्तर--नहीं, मुझे अमृतसरसे डाकृर सत्यपालका पत्र मिला था कि आप यहां आकर लोगोंको सत्याग्रहका सिद्धान्त समझा दीजिये। इसी बीचमें स्वामी श्रद्धानन्दजीका दिल्लीसे पत्र आया कि आप इधरसे होते जाइयेगा क्योंकि यहांकी जनता हाथसे बाहर होती जा रही है।

प्रश्न-वह आपको उद्धत जनताकी शान्त करनेके लिये नहीं बुला रहे थे बल्कि सत्याग्रहके आन्दोलनकी उन्नति करनेके लिये तो ?

उत्तर-नहीं, इस अभिप्रायसे उन्होंने मुझे नहीं बुलाया था। स्वामी श्रद्धानन्दने लिखा था कि जनता मेरे हाथसे बाहर होती जा रही है, इसलिये आप यहां आकर लोगोंको शान्त कीजिये। मैं सत्याग्रहकी प्रतिज्ञाके अनुसार सरकारकी आशाओंको भंग करनेके निमित्त वहां नहीं जा रहा था।