मुझे इस बातकी आवश्यकता प्रतीत हुई कि प्रत्येक प्रान्त भिन्न भिन्न कानूनोंको तोड़े।
यहीं पर महात्माजीने निष्क्रिय प्रतिरोध और सविनय अवज्ञामें भेद बतलाया और कहा कि निष्क्रिय प्रतिरोधमें विरोध के तरीकोंका अन्त नहीं हो जाता।
सर चिम्मनलाल शीतलवाडकी जिरह।
प्रश्न--जहांतक मेरी समझमें आया है सत्याग्रह व्रतका अभिप्राय सत्यका पालन करना है और उस सत्यव्रतके आचरणमें जो कुछ आपदायें उपस्थित हों उन्हें अपने सिरपर ओढ़ लेना है, पर किसी तरहकी हिंसा प्रवृत्तिको जगाकर दूसरोंको कष्ट देना नहीं है?
उत्तर--ठीक है।
प्रश्न--क्या यह सम्भव नहीं है कि सत्यका अन्वेषण करनेमें एक मनुष्य कितना भी तत्पर तथा दत्तचित्त क्यों न हो, उसका मत अन्य सत्यान्वेषियोंसे भिन्न हो सकता है? ऐसी अवस्थामें उचित मार्ग क्या है, इसका निश्चय कौन करेगा?
उत्तर--ऐसी अवस्थामें उसी व्यक्तिको अपना निर्णय करना होगा।
प्रश्न--सत्यके बारेमें तो भिन्न भिन्न व्यक्तियोंकी भिन्न भिन्न धारणा हो सकती है? क्या इससे किसी तरहकी गड़बड़ी नहीं मच सकती?
उत्तर--गड़बड़ीका कोई कारण नहीं प्रतीत होता।