प्रश्न--पर शुद्ध हृदयतापूर्वक सत्यकी तलाश करना प्रत्येक अवस्थामें, प्रत्येक व्यक्तिके लिये भिन्न भिन्न हो सकता है?
उत्तर--इसीके लिये तो 'अहिंसा' की शर्त रखी गयी थी। यदि यह नहीं रहता तो गड़बड़ीकी सम्भावना थी।
प्रश्न--क्या इस बातकी आवश्यकता नही है कि सत्याग्रहका व्रत लेनेवाला उच्च आदर्शवाला, सदाचारी और प्रगाढ़ पण्डित हो?
उत्तर--यह कोई आवश्यक नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति में इन गुणोंका पाया जाना यदि असम्भव नहीं तो नितान्त कठिन है। यदि गोबिन्दने सत्यकी कोई मीमांसा की है जिसपर मकुन्द और श्यामको चलना है तो मैं यह आवश्यक नहीं समझता कि मकुन्द और श्याममें भी वही योग्यता हो जो गोबिन्दमें है।
प्रश्न--मेरी समझमें आपका यह अभिप्राय है कि प्रकृष्ट बुद्धिवाला मनुष्य किसी सिद्धान्तको स्थिर करता है और निष्कृष्ट बुद्धिवालोको उसे आंख मूंदकर स्वीकार करना पड़ता है और उसीपर आचरण करना पड़ता है?
उत्तर--आपने गलत समझा है। मेरा कभी भी यह अभिप्राय नहीं है। मेरे कहनेका यही तात्पर्य है कि यदि काई आदमी अपनी आत्माकी प्रेरणाके अनुसार स्वतन्त्ररूपसे सत्यका अन्वेषण नहीं कर सकता तो उसे उस व्यक्तिकी सहायता लेनी चाहिये जिसने सत्यका पालन किया है और उसका सिद्धान्त स्थिर किया है।