प्रश्न--–पर आपके सिद्धान्तमें तो यही बात देखनेमें आती है कि प्रखर बुद्धि और सदाचारी लोग सत्यकी मीमांसा करें और जिन लोगों में ऐसी योग्यता नहीं है कि वे अपनो वृद्धिसे सत्यकी जांच कर सकें या पता लगा सकें वे आंखें मूंदकर उसो सत्यका अनुकरण करें हैं ?
उत्तर---पर मैं उनसे उतना ही चाहता हूं जितना साधारण बुद्धि रखनेवाला व्यक्ति कर सकता है।
प्रश्न---मेरी समझमें आपके आन्दोलनकी शक्ति अनुयायियों
की मात्रापर है ? यदि अधिक अनुयायी होंगे तो आपकी शक्ति
प्रवल होगी?
उत्तर---यह कोई आवश्यक बात नहीं है। सत्यागहकी-
सफलता केवल एक व्यक्तिके आचरण पर भी सम्भव है यदि वह
व्यक्ति सत्यागहके सिद्धान्तकी मीमांसा जानता है और उसका
अनुसरण करता है।
प्रश्न---मिस्टर गांधी, आपने अपने बयानमे कहा है कि आप
अबतक अपनेको भी सच्चा सत्यागही नही समझते। क्या इससे
। मैं यह अभिप्राय निकाल सकता हूं कि आपसे नीचेके लोगोंकी
अवस्था ता आपसे कहीं खराब होगी अर्थात् वे तो सत्यागहके
सिद्धान्ताको और भी कम समझ सके होंगे?
उत्तर---आपका तर्क भ्रमात्मक है। मैं अपनेको कोई
असाधारण व्यक्ति नही समझता। ऐसे लोग भी हो सकते हैं
जो सत्यका निर्णय करनेमें मुमसे अधिक योग्यता रखते हों।