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( जून २३ १९२० )
वह समय अभी बहुत ही दूर है जब प्रेमकी सर्वव्यापकता
स्वीकार हो सकेगी। सरकारी कर्मचारी प्रजाके हृदयको एक
दूसरेसे अलग रखनेके लिये स्वयं वाधारूप होकर बीचमें बड़े
हो गये हैं। पर यूरोप और पूर्वीय एशियाकी हालकी घटना.
का कच्चा चिट्ठा खोलकर देखें तो हमे तुरन विदित हो जायगा
कि अब धीरे धोरे संमारके सभी लोग इस बातको समझने लग
गये हैं कि व्यक्ति व्यक्तिकी भांति जाति जातिक प्रश्नका निपटारा
भी बलशक्ति द्वारा सफलता पूर्वक नहीं हो सकता। पर असहयोग-
की आर्थिक उपयोगिता सानामिक और नाविक शक्तिसे कहीं
प्रबल है और इसका प्रभाव उत्कट है। युद्धके बाद विजयी
राष्ट्रोंकी भी क्या अवस्था हुई है । उनके सिरका बोझ
हलका होनेके बनिस्पत और भी बढ़ गया है। विजित राष्ट्रो-
के पेट और व्यवसायका प्रश्न विजित और विजेता दोनोंकी
चिन्ताका कारण हो रहा है। इस समय मित्रराष्ट्रोंकी सारी
वृद्धि केवल इसी प्रश्नको हल करनेमे लगी है कि कौनसा
उपाय निकाला जाय जिससे अपनी मर्यादा (विजेता होनेको
मार्यादा) की रक्षा करते हुए भी उसपर किसी तरहका