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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/२७

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दहल गया उसके विषय में भारतीयों की क्या राय होगी इसका सहज में ही मनुमान हो सकता है। किसी मुसलमान इतिहास लेखक का मत लार्ड मेकाले ने उक्त किया है। उसने लिखा है:-(ब्रिटिश) शासन के अन्दर भारतीयों की अवस्था नितान्त शोचनीय है। उनकी दरिद्रता हद वर्जे तक पहुंच गई है और धे घबरा उठे है। ईश्वर अब तो इन विचारों पर रहम कर। ये भी तेरी ही सन्तान हैं। इनकी सहायताकर और इन्हें उबार ले।"

इस अत्याचार को निन्दाके कारण शासन व्यवस्था में किसी परिवर्तन को सम्भावना अवश्य थी और वही हुआ। अर्थात सिविल सर्विस की स्थापना की गई यद्यपि इसका काम यूरो. पियनों की ही हाथों में रहा। दीवानी अदालतों की स्थापना की गई और मालगुजारी की व्यवस्था की गई। इन उपायों से ऊपरी शान्ति स्थापित हो गई पर जो सन्तोष और सुख प्रजा को कम्पनी के पहले ण वह स्वप्रवत् हो गया। जब जब सरकार को मालूम होता कि असन्तोष की मात्रा बढ़ती चली जा रही है तक्तव वह कुछ न कुछ ऐसा लाभदायक काम कर देती जिससे लोग कुछ सन्तुष्ट हो जाते। उदाहरणार्थ स्कूल और कालेजों की स्थापना मादि। पर यह सब ऊपर की बातें थी। सरकार का हृदय नहीं बदला। वह ज्यों का त्यों बना रहा। उन्होंने अपनी कर नीति-को पूर्ण करने के लिये देशी राज्यों को हडपना आरम्भ किया। एक न एक बहाना करके देशी राज्यों का हरण किया गया और