वह ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया। १८५६ में अवधका हरण उस कुटिल नीतिकी अन्तिम और सबसे प्रवका चोट थी। यह बार असाल हो गया। सबके हृदय माके भावसे पूर्ण हो गये। यद्यपि परस्पर मेल नहीं था फिर भी लोगों ने इसमें एकता दिलाई। पर उनके हाथ में कुछ भी जोर नहीं था। निदान उन्होंने देशो सेना से प्रार्थना की। इसका असर पड़ा और सिपाही उत्तेजित हो गये। परिणाम १८५७ का गदर हुआ। कितनों का मत है कि यह गदर भारतीय स्वतन्त्रता का युद्ध था। जो हो अवधमें इसका वही रूप नहीं था जो अन्यत्र था। सिपाहियों के साथ साथ अवधकी रिआयाने भी इस युद्ध में योगदान किया था। उनकी दृष्टि में तो यह अवश्य ही स्वतस्वता का युद्ध था। उन्हें इसका बदला भी उसी तरह मिला। गांव के गांव बरवाद कर दिये गये और जला दिये गये। एक रमणी का आंखों देखा वर्णन है कि गोमती का जल बनले रंग गया था।
इसका परिणाम यह हुआ कि भारत का शासन कम्पनी के हाधसे निकल कर महाराणी विकोरिया के हाथ में चला गया। शासन का भार लेते ही महराणी ने भारतीय प्रजा माम घोषणा-पत्र निकाला और उनके जन्म को उसी मलहम से अच्छा करना चाहा। महाराणी ने उस पददलित और सन्तत दीन प्रजा को