मावासन दिया था कि सबके साथ बराबरी का व्यवहार किया जायगा। यदि कोई भेद होगा तो केवल योग्यता के कारण होगा। महाराणी के अन्तिम वाक्य बड़े ही सारपूर्ण थे:-"उनकी समृद्धि ही हमारी शक्तिकी जड़ होगी, उनका सन्तोष हमारी रक्षा का कारण होगा और उनकी कृतज्ञता को ही हम अपना सबसे उत्तम पुरस्कार समझेगे। पर यह घोषणा केवल कागजी कार्रवाई रह गई। कहने और करनेमें जो भेद होता है वही इसमें लक्ष्य हुआ। इसके लिये समय समय पर सभी समझदार अंग्रेजों-ने शोक प्रगट किया है। उस समय की भारत की स्थिति का वर्णन मिस्टर ब्राइटक्षने निम्नलिखित शब्दों में किया है :-"इस विस्तृत प्रदेशकी करोड़ों प्रजा निःसहाय द्रव्यहीन और साधनहीन बना दी गई है। उनके पथ पदर्शक उनके बीच से हटा लिये गये हैं। उनको कोई सहारा नहीं रह गया है। इस समय उनका एक मात्र रक्षक ब्रिटिश सरकार रह गई है जिसने उन्हें पूरी तरह से अपनी मुट्ठी में कर रखा है। क्या कोई भी उपाय है जिससे अंग्रेज जातिको यह समझाया जा सके कि हमारे देशभाइयों ने अपनी कृपा कटाक्ष से उनकी क्या दशा कर डालो है। यदि इन अमागे भारतवासियों के लिये आपके हृदय में दया नहीं है, यदि आपने इनके लिये दया और सहानुभूति न दिखलाना ही निश्चय कर लिया है तो ईश्वर के नाम पर अपने देश
भाइयों की दशा पर दया कीजिये और इस भीषण पापकर्म से उन्हें बचाये।" यह तो शासन व्यवस्था की बात थी। आर्थिक दुर.
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