महात्मा पोलक आदि प्रधान हड़ताली नेता-जो इस समय जेल के दण्ड भोग रहे हैं.-छोड दिये जायं। इन तीनों मे से महात्मा गांधी को दस मास की अवधि और भी बितानी थी। पर ये फौरन विना किसी शर्त के छोड़ दिये गये। समझने की बात है कि इन नेताओं को छोड़ने के लिये जनता की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। कमीशन ने यह कार्रवाई अपनी ही प्रेरणा से की थी। नेताओं में से भी कोई मुक्ति लाभ के लिये चिन्तित नहीं था क्योंकि जेल से बाहर होते ही सबोंने एक स्वर से कहा था कि जेल का शान्तिमय जीवन इस अवस्थाले कहीं उत्तम हैं। इसी संबन्ध में यह भी स्मरण रखना चाहिये कि जानबूझ कर कानन तोड़ने के अपराध में ये नेता लोग जेल भेजे गये थे। पर हस्टर कमेटी की क्या अवस्था है। जनता ही प्रार्थना पत्र पर प्रार्थना पत्र भेज रही है कि ये नेता गण छोड़ दिये जायं। जनता इस बातको भी भली -भांति जानती और समझती है कि ये विना किसी अपराध के जेल में भेज दिये गये हैं। दक्षिण अफ्रिका में अपने छुटकारा के लिये उन नेताओं को अपनी सिनाख्त तक नहीं देनी पड़ी थी पर यहां की सरकार अस्थायी रूप से पूरी जमानत तक लेकर जांध के काम के लिये छोड़ने तक को तैयार नहीं है। इससे बढ़कर दुःखदायी घटना और क्या हो सकती है।
सरकार को इस तरह की अवज्ञा अभद्रतापूर्ण है। मखिल भारत -वर्षीय कांग्रेस सबकमेटी की इस साधारण प्रार्थ. माको उपेक्षा को दृष्टि से देखना, उस पर विचार न करना तथा समुचित कार्रवाई से इनकार करना नितान्त अनुचित है। इस नाजायज कार्रवाई को सफाई सभ्य संसार के सामने किसी भी अवस्था में नहीं दी जा सकती। इस अनुचित कार्रवाई के लिये सरकार पूर्णरूपसे जिम्मेदार है।