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पंजाब की दुर्घटना

आन्दोलन के सविनय अवज्ञा के अंशपर अपने साथियों से भिन्न मत स्थिर किये होते। तीस मार्च को दिल्ली की अनता ने जिस उदण्डता का परिचय दिया था केवल उस के आधार पर उस आन्दोलन की निन्दा करना कितना अनुचित और गर्हणीय है जिस -का आधार आत्मबल है, जिसका प्रयोग ही साधारण जनता की उदण्डता रोकने तथा उनके हृदयमें से अहिंसा के भाव दूर करने के लिये किया गया है तथा जिसका प्रयोग सविनय अवज्ञा द्वारा अधिकारियों की कानूनी स्वच्छन्दता मिटाने के लिये उसी अवस्था में किया जाता है जब अपनी उच्छृखल कार्रवाई से सरकार अपनी सारी मार्यादा खो देती है। ३० मार्च को तो सविनय अवज्ञा की चर्चा तक न थी। संसार का इतिहास साक्षी है कि जहां कहीं इतने बड़े समारोह हुए है थोड़ा बहुत उपद्रव अवश्य हुआ है। ३० मार्च और ६ अप्रेल के समारोह को सत्याग्रह का नाम में देकर कोई और ही नाम दिया जा सकता था। पर मैं यह बात ददता-के साथ कह सकता हूं कि सत्याग्रह के भाव के न होने पर यह दुर्घटना और भी भोषण और हिंसायुक्त हुई होती। जनता ने सत्याग्रह के भाव को जितनी शीघ्रता के साथ धारण किया था और अपनाया था उसी का यह प्रसाद था कि सारे भारत में अशान्ति होने से एक दम बच गई और आज भी यदि जनता पूर्ण धैर्य, शान्ति और आत्म संयम से काम ले रही है तथा किसी तरह की अशान्ति की प्रवृत्ति नहीं दिखला