साधारण खून खराबी भी हो जाय तो आफत मच जाती है पर भारत से घोर संग्राम का समाचार आवे तब भी सदस्य. गय इतने उदासीन रहते हैं मानों कुछ हुआ ही नहीं है। गये दिनों में मालगुजारी के एक अभियोग पर विचार करना था। सरकारी मालगुजारी विभाग पर एक भारतीय ने दावा कर दिया था। यदि यह प्रश्न ब्रिटनका होता तो प्रतिवाद के मारे सभा भवन गूज उठता। सदस्यगण आकास पाताल पक करने लगते और तुरन्त बहस शुरू हो गई होती पर यह भारत का प्रश्न था और घोर प्रयत करने पर ही हम लोग केवल कोरम पूरा कर सके। .... ....."
भारत की दरिद्रता और अविश्वास बढ़ता जाता था पर पार्लिमेण्ट को इसकी जरा भी परवा न थी।
लार्ड लिटन का शासन भारत के दुर्भाग्य की पराकाष्ठा थी। एक तो प्लेगने यों ही आफत मचा रखा था, बची खुची विपत्ति को पूरी करने के लिये लार्ड लिटन साहब ने पदापर्ण किया। पहला काम जो इन्हें आवश्यक प्रतीत हुआ वह सीमा प्रदेश को सीमा निर्धारित कर देना था। इसके लिये विचार मत भारतीयों के रुपयेसे उन्हें अफगानों पर धावा करने की आवश्यकता प्रतीत हुई। इस काम से छुट्टी पाकर उन्होंने अपनी क्रूर दृष्टि वाक्यूलर पत्रों की ओर घुमाई। और