"वह बराबर बुरी बुरी गालियां देता रहा और कहता था:--- कुत्तियो, शैतान की बच्चियो, तुम लोग तो अपनी खसम को लेकर सोती रही होगी। तुमने उन्हें इस हत्याकाण्ड से क्यों नहीं रोका। अब पुलिस के अफसर तुम लोगों के लहगों का उठा उठाकर तुम्हारी मर्यादा बिगाड़ेंगे।" उसने मुझे ठोकर भी मारी। उसने हम लोगों को घुटनेके बल बैठाया और जांघ की बीच में से हाथ डालकर कान पकड़वाया।
"हम लोगों के साथ इस प्रकार के अत्याचार उस अवस्था में किये गये थे जब हमारे घर के मर्द बंगले में बुला लिये गये थे।" यदि ऊपर उल्लिखित घटनावली सच है तो क्या इससे भी अधिक नीचता और वर्वरता का घृणित नमूना कहीं मिल सकता है ? ओर इन्ही नीचतम करनीके लिये सरकार इन नीचों को अपने खजाने से पेशन देने पर तुली है। गैर सरकारी कमेटीने जो गवाहियां ली हैं उनके पढ़ने से इन अधिकारियों की नीचता के पाठकों को ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे। इन बयानो को श्रीयुत अण्डरूज और श्रीयुत लाभसिंह बैरिस्टर-एट-ला ने लिया था जो उन स्त्रियों को देखने के लिये और जांच करने के लिये मनियांवाला भेजे गये थे। श्रीयुत अण्डरूज ने वहां खुली तौर से जांच की थी जहां सब जा सकते थे।
मिस्टर माण्टेगूका ध्यान इस नीचता की ओर आकृष्ट किया
गया । उन्होंने भारत के अधिकारीवर्ग के अनुरूप उद्दण्डता के कारण श्रीमती सरोजिनी नायडू पर इस निराधार विवरणके लिये