थे क्योंकि उनके विना सम्पूर्ण स्थितिको पूरी तरह समझ लेना
जरा कठिन है।
मुझे विश्वास नहीं होता कि भारत सरकारने उन भीषण आक्षेपोंके उत्तर देने का साहस काके यह तार आपके पास भेजा है। उन आक्षेपोंमें इतने बलिष्ट प्रमाण है कि उनका प्रतिवाद करना कठिन है। जिस कमेटीने गवाहियां ली थीं उसमें देशके प्रधान प्रधान और गण्यमान लोग ही थे। उनमेंसे प्रायः सभी हाईकोर्ट वकील थे। उनमेसे एक तो जज भी रह चुके हैं, और दो अपने अपने प्रान्तके मबसे बढ़ चढ़े वकील है। इसके अतिरिक्त महात्माजीकी सतर्कता बारेमें कुछ लिखना यर्थ है। जिन गवाहियोको पूरी तरहसे जिरह करनेके बाद इन महान व्यक्तियोंने प्रकाशित किया है उसे असत्य प्रमाणित करनेकी चेष्टा धृष्टता होगी।
यदि इन व्यक्तियों में हम लोगोंका जरा भी विश्वास है तो क्या यह किसी भी अवस्था भी उचित होगा कि हम लोग डिपटी कमिश्नर सदश साधारण अधिकारीके इनकार करनेको प्रमाणित मान लें जबकि वह स्वयं उसका जिम्मेदार है, और साथ ही जब कि उसने अपनी सफाईका आधार उन बातोंको बताया है जिनकी सार्थकता पर किसी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता। क्या केवल आचरणके दोषारोपणसे उन पाशविक कृत्यों और हेय आचरणोंपर तोपन पड़ सकता है !
मुझे इस बातको स्मरण करके शर्म आती है कि ब्रिटिश