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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/३३१

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लाला लाभसिंह

उपस्थित था। गवाहों के बयानसे विदित होता है कि १३ तारीखको उसने अहिंसा और उपद्रवका घोर विरोध किया पर बादको राजी हो गया। १४ तारीखको बलवाइयोंके साथ वह अनेक स्थानोंपर देखा गया था पर उस दिन उसने अधिकारि-योंकी सहायता की थी। हम लोग इसे ताजिरात हिन्द दफा १२१ के अनुसार दाधी ठहराते हैं अर्थात् बगावत करनेका दोष इसपर लगाया जाता है।" यहांपर इस प्रकरणको उद्धृत करनेका हमारा एकमात्र अभिप्राय पाठकोंको उस घोर अन्यायका---जो कि लाला लाभसिंहके साथ किया गया था---आभासमात्र दे देना है। यह बात स्मरण रखने योग्य है कि सजाकी मियाद-को घटाना और वादको छोड़ देना---पर अभियुक्त उसा प्रकार दोषी बना है- लाला लाभसिंहके शब्दों में ही 'न्यायका गला घोटना' को पूर्णतया चरितार्थ करना है। इस तरह अनेक उदाहरण मिल सकते हैं जिनमें न्यायके नामपर घार अन्याय किया गया है। हम लोग उन्हें सहजमे ही नहीं भूल सकते। जबतक हमारे निर्दोषी पञ्जाबी भाई इस तरह कानुनके अन्दर अन्यायसे दोषी बने । नबतक सच्चे भारतवासीको हैसियतसे हमें धैर्य और शान्ति नहीं ग्रहण करनी चाहिये ।