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( दिसम्बर १०, १९१९ )
कसूरकी घटनाके संबन्धमें लाहोरके ट्रिब्यून पत्रमे जो समाचार प्रकाशित हुआ है और जिसका महोत्मा गान्धीने समर्थन किया है उसकी यदि हमलोग आलोचना और प्रत्यालोचना करें तो स्पष्ट हो जाता है कि पंजाब के अधिकारी जरा जरासा बातपर, अति साधारण उत्तेजनापर बल प्रयोगके लिये तुले हैं। पर इस घटनाका महत्व---यद्यपि यह साधारण है---अन्य बातसे है। मि० मासेडनने काननको अपने हाथ में लिया सही पर उन्होंने तुरत हो उसके लिये यथाशक्ति प्रायश्चित्त भी की। महात्मा गान्धीकी उपस्थितिको उन्होंने अनधिकार हस्तक्षेप समझ कर किसी तरहका रोष नहीं प्रगट किया। उन्होंने महात्माजी-को सब बाते समझानेके लिये बुलाया और जब महात्माजीने उन्हें यह समझाया कि जो क्षतिपूर्ति आपने किता है वह पर्याप्त नहीं हा सकती जबतक कि खुली तौरपर किये गये अपगधके लिये खुली तौर पर पश्चात्ताप नहीं प्रगट किया जाय तो उन्होंने उसे महष स्वीकार किया और महात्माजीका अधिकार दे दिया कि वे इस बातको पत्रों में प्रकाशित कर दें कि हमें (मि० मार्सडनको) इस घटनाके लिये हार्दिक दुःख है। इस प्रकारके खेद प्रकाशन-