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पंजाबकी दुर्घटना

पहले प्राथनापत्रका यह उत्तर पाकर विचारा विहारी लाल हताश नहीं हुआ। उसने सोचा कि किसी भूलके कारण उसके अभियोगपर पूर्ण विचार नहीं किया जा सका। यह सोचकर उसने दूसग प्रार्थनापत्र भेजा । प्रार्थनापत्रके शब्द बड़े ही जोरदार, भावपूर्ण और गम्भीर हैं। वह इस तरहसे लिखा गया है कि अवश्य निगरानी होगी। फजूल बातोंका उसमें कहीं नाम निशान भी नहीं है। केवल मुख्य बातोंका उसमे समावेश है ओर इतना सूक्ष्म है कि बहुत काममें व्यस्त आदमी भा उसे पढ़ने के लिये समय निकाल लेगा।

कई दिन हुए एक मित्रने मुझसे कहा---"लगातार ४० वर्षोंसे पंजाब ब्रिटश छत्रछायाका अनन्य भक्त रहा है और उसकी जड़ मजबूत करता आया है। आज उसे ब्रिटनका असली रूप विदित हुआ है। मेरा ब्रिटिश न्यायमें विश्वास नहीं रहा। मुझे सुधार की कुछ भी पावा नहीं। यदि हमारी मर्यादा और हमारा जीवन सुरक्षित नहीं है, यदि हम इस समय भय-के चङ्गालमें फसे रहते हैं ता इन सुधागेंसे हमें क्या लाभ ।"

विहारीलाल सचदेवका अभियोग इसी प्रकारका है। अफसरों के गलत फहमोका एक नमूना है। यह युवक एकदम निर्दोष प्रतात होता है। फैसले में लिखा है कि अभियुक्त ४,५, १२ और १३ अप्रेलकी सभाओंमें उपस्थित नहीं था । प्रधान पवाहका बयान काबिल इतमीनाम नहीं है। अन्य गवाहियां बनायी गई हैं। पर यदि उन्हें सच भी मान लिया जाय तो