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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/३५७

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रामनगरकी दुर्घटना

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( दिसम्बर १७, १९१९ )

सिविल और मिलिटरी गजटमें समाचार निकला था कि १५ अप्रेल को रामनगरमें कुछ लोगोंने सम्राटकी प्रतिमा बनाई और उसे ले जाकर नदीक किनारे जला दिया। इसके संबन्धमें कितने ही आदमी पकड़े गये और सैनिक अदालतके सामने मिस्टर ओब्राइन के इजलास में उनका विचार हुआ। दो विशेष अधिकारियोंने इस घटनाका समर्थन किया। निदान पण्डित मदन मोहन मालवीय और पण्डित मोतीलाल नेहरूने श्रीयुत पुरुषोत्तमदास टण्डनको इसकी जांचके लिये भेजा। जांच के बाद उन्होंने खुली चिट्ठोमें लिखा था कि घटना सर्वथा असत्य है। रामनगरमें इस तरहकी कोई घटना नहीं हुई। पर सरकारकी ओरसे अभीतक उक्त पत्रका प्रतिवाद नहीं छपा है । पण्डित जगतनारायण तथा शाहबजादा सुलतान अहमदने कर्नल ओब्राइनकी जिरहसे जो बात निकाली उससे टण्डनजी के पत्रकी बातें और भी अधिक प्रमाणित हो जाती हैं। कर्नल ओब्राइन ने इस बातको स्वीकार किया था कि रामनगरकी दुर्घ- टनाकी जब पहले पहल रिपोर्ट मेरे पास आई तो सम्राटकी प्रतिमा के सम्बन्धमें कोई चर्चा नहीं थी। उन्होंने यह भी स्वीकार