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खिलाफत कांफरेंस


पूर्वापर परिणामपर पूर्ण विचार कर लेनेके बाद अपना कदम पीछे हटा लेगी और वहिष्कारके प्रस्तावको रद्द कर देगी। इस महान् प्रश्नपर विचार करनेके लिये शान्ति, धैर्य तथा प्रत्यक्ष प्रमाणकी आवश्यकता है। केवल हिंसाका निवारण ही पर्याप्त नहीं है। हिंसापूर्ण भाषणका भी उतना ही प्रभाव पड़ता है जितना हिंसापूर्ण आचरणका । इसलिये मुझे पूर्ण आशा है कि आप लोग उतावलापनसे विना समझे यूझे कुछ बोल या लिखकर इस पवित्र तथा न्यायपूर्ण उद्देश्यको कलङ्कित न करेंगे।

पंजाबके अत्याचार

यहीं पर एक और विषयपर दो चार शब्द कह देना उचित होगा। कुछ मित्रोंका कथन है कि पंजाबपर किये गये अत्याचारके कारण भी हमें विजयोत्सवमें भाग नहीं लेना चाहिये। मैं इस विषयमें अपने उन मित्रों से मतभेद रखता हूं। पंजाका प्रश्र्न घरेलू प्रश्न है। वह कितना भी भीषण क्यों न हो पर उसे साम्राज्यके मुकाबिले खड़ा करना उचित नहीं। इसलिये पंजाबके प्रश्नको लेकर साम्राज्य के विजयोत्सवमें भाग न लेना और उससे असहयोग करना हमारी अदूरदर्शिता कहलावेगी। दूसरे पंजाबके अत्याचारसे और सन्धिकी शर्तों से किसी तरह- का सम्बन्ध नहीं है पर खिलाफतका प्रश्न उससे घना सम्बन्ध रखता है। यदि हम खिलाफतके प्रश्नको उचित महत्व और मूल्य देना चाहते हैं तो हमें इस प्रश्नको और प्रश्नोंके साथ