जो हमारे संयुक्त साम्राज्य तथा फॅच साम्राज्यकी प्रजामें सबसे अधिक है। पर कुस्तुन्तुनियाको अन्तर्राष्ट्रीय बनाने के पक्षमें उन्होंने विचित्र दलीलें पेश की हैं। उन्हें पढ़कर उनकी राजनीतिक कुटिलताका पता चलता है। वे लोग मुसल-मानोंको यह आशा दिलाकर शान्त करनेकी आशा करते हैं कि यह नगर राष्ट्रसंघका केन्द्र होगा और इससे इसका महत्व इतना अधिक बढ़ जायगा जितना भाजतक संसारके किसी भी नगरको प्राप्त नहीं हो सका है। आजतक यह नगर एकमात्र सुलतानको राजधानी थी। पर अब यह संसार-की शांन्तिका केन्द्र हो जायगा। इसके अतिरिक्त इसे अन्तर्रा-ष्ट्रीय बना देनेसे इसके भविष्य आधिपत्यका भी यहींसे निपटारा हो जायगा। गर्भस्थ बालक राष्टसंघके रहने के लिये घर बनाने में ये लोग इतने पागल हो गये हैं कि राष्ट्रीयताके प्रश्नपर इनका ध्यान ही नहीं जाता। भला यह कब संभव है कि इससे मुसलमानोंको शान्ति मिलेगी और वे इस व्यवस्थासे सन्तुष्ट होंगे। इस तरहका विचार मनमें लाना अन्याय है और अदूरदर्शिता पूर्ण है।
कुस्तुन्तूनियाको अन्तर्राष्ट्रीय बनाने के पक्षमें सबसे बड़ी वात यह कही जाती है कि राष्ट्रसङ्घके लिये इसमें घर बनेगा। पर राष्ट्रसङ्ग है क्या ? राष्ट्रसङ्घ एक ऐसी विलक्षण सम्पत्ति है जिसपर सबका अधिकार है पर वह स्वयं किसोसे सम्बन्ध नहीं रखता। अपने मतके समर्थनमें ये लोग अमरीकाका