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खिलाफतकी समस्या


अनुकरण करें और जिस तरह 'अफ्रिकाके सत्याग्रह' के युग में भारतीयों का पूर्णरूप से पक्ष लेकर, उनकी मांगों को ब्रिटिश सर. कारके समक्ष रखकर' वे उनके साथ न्याय करनेका प्रयत्न कर रहे थे, उसी तरह इन्हें भी उचित है कि खिलाफतके प्रश्न को अपना निजी प्रश्न समझ लें और मुसलमान नेताओंके अगुआ बनकर पूर्ण साहसके साथ इसे सन्धि परिषदके समक्ष रखकर उसके साथ न्याय करावें अवथा खिलाफत आन्दोलनको चलाने में पूरी सहायता दें जिससे उत्तेजनाके कारण इसके द्वारा शोचनीय घटनायें न हो जायं ।

पर इस स्थिति की जितनी जिम्मेदारी हम हिन्दू और मुसलमानों पर है उतनी बड़े लाटपर नहीं और साथ ही इसकी जितनी अधिक जिम्मेदारी मुसलमान नेताओंपर है उतनी अधिक हिन्दू और मुमलमानोंपर नहीं ।

अभी से ही हमारे मुसलमान मित्र खिलाफत के सम्बन्ध में अधीर होने लगे हैं। अधीरताका स्वाभाविक परिणाम उन्माद है और उन्मादसे हिंसा तथा अशान्तिका होना साधारण बात है। मेरी आन्तरिक अभिलाषा है कि मेरे साथ प्रत्येक व्यक्ति यह समझ ले कि हिंसा आत्महत्याके बराबर है ।

थोड़ी देरके लिये मान लिया जाय कि मित्रराष्ट्र अथवा ब्रिटन मुसलमानोंकी मांगपर ध्यान नहीं देते और उनको पूरा नहीं करते । पर इससे मैं निराश नहीं हुआ हूं। मिस्टर मांटे. गूकी दृढ़तापर मुझे पूरा भरोसा है। मुसलमानों के अधिकार-