हमारी मानसिक स्थितिका सच्चा द्योतक होगा अर्थात् यदि जनता
अपने मनसे असहयोग करेगी तो इनके द्वारा उसके असन्तोषका
सचा दिग्दर्शन होगा। सैनिकोंको सरकारी नौकरी छोड़ देनेके
लिये कहना अभी उपयुक्त नहीं। यह प्रथम न होकर अन्तिम
कार्यक्रम होना चाहिये। हम लोग उस समय इस ओर कदम
बढ़ानेके लिये अग्रसर होंगे जिस समय बड़े लाट, भारत मन्त्री
तथा प्रधान मन्त्री सभी हम लोगोंको त्याग देंगे। इसके
अतिरिक्त सहयोग त्यागनेके जितने कार्यक्रम हैं उनसे बहुत
सतर्क होकर काम लेना होगा। इसलिये हमें धीरे धीरे भागे
बढ़ना चाहिये ताकि घोरतम उत्तेजनाके वशवती होकर भी हम
आत्मसंयम न खो।
कलकत्ताकी खिलाफत सभा तथा कांग्रेसमें जो प्रस्ताव पास किये मये उन्हें कितने लोग सशङ्क नेत्रोंसे देखते हैं। उनमेंसे उन्हें हिंसाके लिये तैयारीकी बू आती है। पर मेरी दृष्टि में उनमें कोई ऐसी बात नहीं है यद्यपि मैं किसी किसो प्रस्तावोंके शब्दोंसे पूर्णतया सहमत नहीं हूँ।
कई लोग प्रश्न करते हैं, क्या एक हिन्दु समस्त प्रस्तावों को
स्वीकार कर सकता है ? में अपने विषयमें साहससे कह
सकता है। मुसलमानोंकी न्यायपूर्ण मांगोंको सफल कराने में
मैं सच्चे दिलसे उनका तब तक साथ देता रहा है मौर
उनकी मदद के लिये तैयार रहूंगा जब तक वे किसी तरहकी
हिंसाकी प्रवृत्ति नहीं दिखलायेंगे और पूर्ण भात्मसंयमके