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खिलाफतकी समस्या


नौकरी खीकार न करना, मालगुजारी आदि न देना, यदि सिद्धान्ततः नहीं तो व्यवहारमें तो सरकार के विघातक अवश्य हैं और इस तरह की बातें अन्त में जाकर शासनका कार्य अवश्य ही असम्भव कर देगी। आगे चलकर आप फिर लिखते हैं-'यदि सरकार प्रजाकी बात न माने तो प्रजाको इस बातका पूर्ण और नैसर्गिक अधिकार है कि वह उस सरकारका साथ छोड़ दे।'आपने जो मन्तव्य उपस्थित किये हैं उनकी सात्विक प्रौढ़ताके प्रश्नका अलग रखकर मैं आपसे यह पूछना चाहता हूं कि इस समय आप किस सरकारके खिलाफ अपनी यह कार्रवाई चलाना चाहते हैं? क्या भारत सरकारने इस मामले में अपने बलभर काम नहीं किया है और अपनी शक्तिभर चेष्टा नहीं कर ली है? यदि उसकी प्रार्थनायें न सुनी जायं, यदि उसके कहने पर ध्यान न दिया जाय तो क्या उसके लिये उसके विरुद्ध कोई कार्र-वाई उचित और न्यायपूर्ण होगी? उचित तो यह है कि मित्रराष्ट्रोंकी सुप्रीम कौंसिल (सबसे बड़ी सभा) के साथ असहयोग किया जाय और यदि इस बातका पक्का प्रमाण मिल जाय कि ब्रिटनने वहां पर भी भारत सरकार नथा भारतीय प्रजाकी मांगोंका समर्थन नहीं किया है तो उसके साथ भी असहयोग किया जाय। मुझे प्रतीत होता है कि लिखते और भाषण करते समय आप इस बातको भूल जाते हैं कि इस (खिलाफत ) मामलेमें भारत सरकार प्रजाके साथ है और यदि उनकी उचित मांगें नहीं दी जाती तो सरकारके साथ असहयोग-