पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४५२

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खिलाफतकी समस्या


दिखलाई है, हिन्दू उससे सहमत नहीं हो सकते। इसके अतिरिक्त जहां मुसलमानों का ईसाईयो के साथ धार्गिक कलह है वहां हिन्दुओं को किसा भी प्रकार से भी मुसलमानों का साथ नहीं देना चाहिये ।

(५) किसी भी अवस्था में मुझे असहयोगका प्रचार नहीं करना चाहिये क्योंकि कितना भी शान्तिमय वह क्यों न हो विद्रोहका ही एक अङ्ग है ।

(६) विगत वर्ष के अनुभवों से मुझे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये कि देश में हिंसाकी जो हवा बह रही है उसके सामने शान्तिमय उपायों द्वारा जनताको हिंसा करनेसे रोक रखना किसी भी एक मादमाकी शक्तिसे बाहर है ।

(७) असहयोग व्यर्थ है क्योंकि कोई भी व्यक्ति सच्चे हृदय से इसमें शामिल नहीं होगा और उस ज्वारके बाद जब भांटा मायेगा वह अवस्था इस आशामय अवस्थासे कहीं खराब होगी।

(८) असहयोग सभी कामकी गतिको रोक देगा, यहां तक कि सुधारों का काम भी बन्द कर देगा । इस प्रकार उन्नति की यह मन्द गति भी बन्द हो जायगी ।

(९) हम लोगों की आकांक्षायें कितनी ही पवित्र क्यों न हों पर मुसलमानोंके हृदयमें बदलेके भाव भरे हैं । संक्षेपमें मैंने उन सभी प्रश्नों का समावेश यहां कर दिया है । अब मैं क्रमशः एकएकका उत्तर देता जाऊगा ।

(१०) मेरी समझमें तुर्कों की मांगें केवल उचित और न्याय