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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४५३

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और प्रश्नोंका उत्तर


पूर्ण ही नहीं हैं बल्कि वे पूर्ण हैं क्योंकि तुर्क लोग केवल वही चाहते हैं जो कुछ उनका है। मुसलमानों ने अभी हाल में जो सूचना निकाली है उसमें उन्होंने साफ साफ शब्दों में लिख दिया है कि गैरमुसलमान, और गैरतुर्क जातियोंकी रक्षाके लिये जिस तरहको जमानत उचित समझी जाय तुर्को से ले ली जाय अर्थात् तुर्की साम्राज्यके अन्तर्गत अरबवालोंको और ईसाईयों को अलग अलग स्वराज्य दे दिया जाय।

(२) मेरी यह धारणा नहीं है कि तुर्क लाग किसी भी तरह कमजोर, अयोग्य अथवा कूृर हैं। हां, उनका संगठन खराब हो गया है और उनमे कोई सुयोग्य संचालक नहीं रह गया है। अनेक संकटोंमें रहकर भी उसे युद्ध में प्रवृत्त होनेके लिये वाध्य होना पड़ा। प्रायः देखने में आता है कि जिसके हाथ से अधिकार छीन लेने को इच्छा होती है उसपर प्रायः यही-अयोग्यता, कमजोरी और करताक-दोष लगाये जाते हैं। सोरिया और प्रेस आदि स्थानोंमें कत्ले आमका जा दोषारोपण तुर्कोपर किया जाता है उसके सम्बन्धमें स्वतन्त्र जांच कमेटीके लिये प्रार्थना की गई पर कभी स्वीकार नहीं हुई। किसी को तंग न करने के लिथे जमानत ली जा सकती है।

(३) मैं आरम्भमें हो कह चुका हूं कि यदि भारतीय मुसल- मानोंके साथ मेरा किसी तरहका सम्बन्ध न रहता तो मैं तुर्कीके मामले में उतनाही उदासीन रहता जितना उदासीन में आस्ट्रिया या पोलके मामले में हूं। पर भारतवासी होनेकी हैसियत से में