पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४६४

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खिलाफत की समस्या


अधिकार उठा दिया गया है, और उन्हें लाचार करके महल मे बन्द कर दिया गया है जिसे हम किसी भी तरह महल नहीं कह सकते बल्कि जेलखाना कह सकते हैं। बड़े लाटका कहना ठीक है कि "सन्धि की शर्तों में ऐसी बातें हैं जिनसे मुसलमानों को बड़ा ही दुःख होगा।" इतना जानकर भी वे भारतीय मुसलमानों के पास साहस और सहानुभूति के समाचार भेजकर उनका अपमान क्यों कर रहे हैं ? क्या उन्हें सन्धि के उन कर और निर्दय शौके पढ़ने से, अथवा यह स्मरण करके कि प्रधान मन्त्री ने हमारी सहायता की प्रशंसा करते हुए कहा था कि भारत के मुसलमानों ने संकट के समय साम्राज्य का साथ दिया और पूर्ण राजभक्ति का परिचय देते हुए सहायता की, इत्यादि से सन्ताष हो गया? क्या यह बड़े लाटके लिये हीनता की बात नहीं है कि इस अवस्था मे भी वे इस बातकी झठी दोहाई देते रहें कि जिस न्याय और मनुष्यत्व के आदर्श के लिये मित्रराष्ट्रों ने युद्ध किया था वह पूरा हुआ। क्यों न हो! यदि तुकों के साथ की हुई सन्धि की शर्ते'ज्यों की त्यों रह गई तो संसार देखेगा कि मनुष्य अधिकार के मदमें उन्मत्त होकर कितनी उद्दण्डता दिखला सकता है और अन्याय का आचरण कर सकता है। किसी विजित वीर जाति की वीरता और साहस को कुचल डालने की व्यवस्था करना मानुषिक नहीं कहा जा सकता, यह पशुत्व का ज्वलन्त उदाहरण है। यदि युद्ध के पहले तुर्कलोग ब्रिटन के घनिष्ठ मित्र थे और युद्ध में जर्मनी का साथ देकर उन्होंने भूल की तो उसके लिये उन्हें नीचा दिखाकर